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मनुष्यलोक में भी वर्तमान ज्योतिष्कों में ही मिलती है । इसीलिए माना गया है कि काल का विभाग ज्योतिष्कों की विशिष्ट गति पर ही निर्भर है । दिन, रात, पक्ष आदि स्थूल कालविभाग सूर्य आदि ज्योतिष्कों की नियत गति पर अवलम्बित होने के कारण उससे ज्ञात हो सकते हैं । किन्तु समय, आवलिका आदि सूक्ष्म कालविभाग उससे ज्ञात नहीं हो सकता । स्थान-विशेष में सूर्य के प्रथम दर्शन से लेकर स्थान-विशेष में सूर्य का जो अदर्शन होता है उस उदय और अस्त के बीच सूर्य की गतिक्रिया ही दिन का व्यवहार होता है । इसी प्रकार सूर्य के अस्त से उदय तक की गतिक्रिया से रात्रि का व्यवहार होता है।
दिन और रात्रि का तीसवाँ भाग मुहूर्त कहलाता है । पन्द्रह दिनरात का पक्ष होता है । दो पक्ष का मास, दो मास की ऋतु, तीन ऋतु का अयन, दो अयन का वर्ष, पाच वर्ष का युग इत्यादि अनेक प्रकार का लौकिक कालविभाग सूर्य की गतिक्रिया से किया जाता है । जो क्रिया चालू है वह वर्तमानकाल, जो होनेवाली है वह अनागतकाल और जो हो चूकी है वह अतीतकाल है । जो काल गणना में आ सकता है वह संख्येय है । जो गणना में न आकर केवल उपमान से जाना जाता है वह असंख्येय है। जैसे पल्योपम, सागरोपम आदि और जिसका अंत नहीं है वह अनन्त है । १७. विमानों का विस्तृत वर्णन :
ज्योतिष देवों के आवासों को विमान कहा जाता है । यहाँ किस देव के कितने विमान है उसका निर्देश तालिका के माध्यम से दिया जा रहा है
नाम प्रमाण आकार व्यास गहराई रंग किरणें वाहक १. चन्द्र ३७-३८ अर्धगोल ५६/६९ यो. २८/६१ यो. मणिमय १२००० १६००० २. सूर्य ६६-६८ अर्धगोल ४८/६९ यो. २४/६१ यो. मणिमय १२००० १६००० ३. बुध ८४-८५ अर्धगोल १/२ को. १/४ को. स्वर्ण मंद ८००० ४. शुक्र ९०-९१ अर्धगोल १ को. १/२ को. रजत २५०० ८००० ५. बृहस्पति ९४-९५ अर्धगोल कुछकम १/२ को. स्फटिक मंद ८०००
. १ को. ६. मंगल ९७-९८ अर्धगोल १/२ को. १/४ को. रक्त मंद ८०००
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