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वह सम भूमिमाग अनेक प्रकार के आवर्त, प्रत्यावर्त्त, श्रेणि, प्रश्रेणि, स्वस्तिक, पुष्यमाणव, शराबसंपुट, मत्स्यांड, मकराण्ड, जार मार आदि शुभलक्षणों
और कृष्ण, नील, लाल, पीले और श्वेत इन पांच वर्षों की मणियों से उपशोभित था और उनमें कितनी, ही मणियों में पुष्पलताओं, कमलपत्रों, समुद्रतरंगो, वसंतमालाओ, पद्मलताओं, आदि के चित्र बने हुए थे तथा वे सभी मणियां, निर्मल, चमकदार किरणों वाली उद्योत-शीतल प्रकाश वाली थीं । मणियों का वर्ण :
मणियों की कृष्ण वर्ण वाली मणियां क्या सचमुच में सघन मेघ घटाओं अंजन-सुरमा, संजन (गाडी के पहिये की कीच) काजल, काली स्याही की गोली, भैसे के सींग की गोली, भ्रमर पंक्ति, भ्रमर, पंख, जामुन, कच्चे अरोठे के बीज अथवा कौए के बच्चे, कोयल, हाथी के बच्चे, कृष्ण सर्प, कृष्ण बकुल, शरद ऋतु के मेघरहित आकाश, कृष्ण अशोक वृक्ष, कृष्ण कनेर, कृष्ण बंधुजीवक (दोपहर में फूलने वाला वृक्ष-विशेष) जैसी काली थीं ?
ये सभी तो उपमाये हैं । वे काली मणियां तो इन सभी उपमाओं से भी अधिक इष्टतर, कांततर (कांति-प्रभाववाली), मनोज्ञतर और अतीव मनोहर कृष्ण वर्ण वाली थीं।
उनमें से नील वर्ण की मणियाँ क्या भंगकीट, ग के पंख, शुक (तोता), शुकपंख, चाण पक्षी (चातक), चाव पंख, नील के अंदर का भाग, नील गुटिका, सावा (धान्य), उच्चन्तक (दातों को नीला रंगने का चूर्ण) वनराजि, बलदेव के पहनने के वस्त्र, मोर की गर्दन, कबूतर की गर्दन, अलसी के फूल, बाणपुष्प, अंजन कोशी के फूल, नीलकमल, नीले अशोक, नीले कनेर और नीले बंधुजीवक जैसी नीली थी ?
__ वे नीली मणियां तो इन उपमेय पदार्थों से भी अधिक इष्टतर, अतीव मनोहर नील वर्ण वाली थीं ।
उन मणियों में की लोहित (लाल) रंग की मणियों का रंग सचमुच में क्या शशक (खरगोश) के खून, भेड़ के रक्त, सुअर के रक्त, मनुष्य के रक्त, भैसें के रक्त, बाल, इन्द्रगोप, प्रातःकालीन सूर्य, संध्याराग (संध्या के समय होने वाली लालिमा), गुंजाफल (धुंघची) के आधे भाग, जपापुष्प, किंशुक पुष्प (केसुडा के फूल), परिजातकुसुम, शुद्ध हिंगुलुक (खनिजपदार्थ-विशेष), प्रबाल (मूंगा), प्रवाल
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