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विद्युत इन पाँचों नामों के युगलों रूप द्रहों में उन-उन नामवाले नागकुमार देवों के निवासस्थान ये आवास हैं । ७१
१०. भवनों का स्वरूप :
भवनवासी देवों के भवनों की सुरक्षा हेतु चारों ओर गहरी और विस्तीर्ण खाईयाँ और परिखाएँ खुदी हुई हैं, जिनका अन्तर स्पष्ट प्रतीत होता है । वे यथास्थान परकोटों, अटारियों, कपाटयें, तोरणों और प्रतिद्वारों से सुशोभित हैं । वे भवन विविध यन्त्रों, शतघ्नियों (महाशिलाओं या महायष्टियों, मूसलों, मुसंडियो आदि शस्त्रों) से वेण्टित हैं । वे शत्रुओं द्वारा अयुध्य ( युद्ध न करने योग्य), सदा जयशील, सदा सुरक्षित एवं अडतालीस कोठों से रचित, अडतालीस वनमालाओं में सुसज्जित, क्षेममय, शिवमय, किंकर देवों के दण्डों से उपरक्षित हैं । लीपने और पोतने से वे प्रशस्त हैं । उन पर गोशीर्षचन्दन और सरस रक्तचन्दन से पांचों अंगुलियों के छापे लगे हुए हैं । यथास्थान चंदन के कलश रखे हुए हैं । उनके तोरण, प्रतिद्वार, देश के भाग, चंदन के घडों से सुशोभित होते हैं । वे भवन ऊपर से नीचे तक लटकती हुई लम्बी, विपुल एवं गोलाकार मालाओं से युक्त हैं तथा पंचरंगी ताजे सरस सुगंधित पुष्पों से युक्त होते हैं । वे काले अगर, श्रेष्ठ चीड, लोबान तथा धूप की महकती हुई सुंगध से रमणीय, उत्तम सुगंधित होने से गंध-वर्त्ती के समान लगते हैं । वे अप्सरांगण के संघातों से व्याप्त, दिव्य वाद्यों के शब्दों से भली-भांति शब्दायमान, सर्वरत्नमय, स्वच्छ, स्निग्ध, कोमल, घिसे हुए, पौछे हुए, रज से रहित, निर्मल, निष्पंक, आवरणरहित कान्ति वाले, प्रभायुक्त, श्रीसम्पन्न, किरणों से युक्त, उद्योत (शीतल प्रकाश) युक्त, प्रसन्न करने वाले, दर्शनीय, अभिरूप ( अतिरमणीय) और प्रतिरूप ( सुरूप) बने हुए हैं । ७२ धनिक मानवों के घर एक से एक बढिया बने होते हैं, उसी तरह देव भी अपने विमानावास सुंदर बनाते हैं । ऐसा इस उद्धरण से ज्ञात होता है । भवनों की संख्या :
भवनवासी देवों के खर पंक भाग में स्थित भवनों की संख्या निम्न प्रकार से है७३ — (ला=लाख)
देवों का नाम
१. असुरकुमार
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भवनों की संख्या
उत्तरेन्द्र
दक्षिणेन्द्र
३४ ला.
३० ला.
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कुल भवन
६४ ला.
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