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सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारे ये पांचो प्रकार के देव ज्योतिर्मय हैं। इसलिए इनकी ज्योतिष्क यह सामान्य संज्ञा सार्थक है । तथा सूर्य आदि संज्ञाएँ विशेष नामकर्म के उदय से प्राप्त होती हैं ।
इस प्रकार ज्योतिष्क शब्द का अर्थ विविध रूप में प्राप्त होता है । १. देवों के भेद :
प्रज्ञापना सूत्र में ज्योतिष्क देवों के भेदों का उल्लेख किया गया है कि ये पाँच प्रकार के हैं । ये भेद नामकर्म के उदय के कारण निम्न प्रकार हैं
१. चंद्र २. सूर्य ३. ग्रह ४. नक्षत्र
५. तारे २. देवों का स्वरूप :-१०२
___ ज्योतिष्क विमानवासों में बहुत से ज्योतिष्क देव निवास करते हैंबृहस्पति, चन्द्र, सूर्य, शुक्र, शनैश्चर, राहु, धूमकेतु, बुध एवं अंगारक (मंगल) । ये तपे हुए स्वर्ण के समान वर्ण वाले अर्थात् किञ्चित् रक्त वर्ण के होते हैं । ग्रह ज्योतिष्कक्षे क्षेत्र में गति (संचार) करते हैं, गति में रत रहते हैं । अट्ठाईस प्रकार के नक्षत्रदेव गण नाना आकारों वाले होते हैं। तारे पाँच वर्गों के होते हैं। स्थित लेश्या वाले होते हैं । ये संचार करते हैं । ये अविश्रान्त (बिना रूके) मंडल (वृत्त गोलाकार) में गति करने वाले होते हैं । प्रत्येक देवों के मुकुट में अपने अपने नाम का चिह्न व्यक्त होता है । ये महद्धिक होते हैं । वाणव्यंतर के स्वरूप के समान ही इन देवों का स्वरूप होता है । ३. ज्योतिष्केन्द्र का वैभव :
इन्द्र अर्थात् सभी देवों पर अपना वर्चस्व रखनेवाला । अपने लाखों विमानावासों में अपने हजारों सामानिक देवों पर, अपनी अग्रमहिषियों पर, अपनी सेना परिषदाओं और सेनाधिपति देवों, हजारो आत्मरक्षक देवों और बहुत से ज्योतिष्क देवों और देवियों का आधिपत्य करते हुए ये इन्द्र रहते हैं । इनके दो
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