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इन्द्र हैं-चन्द्र और सूर्य । ४. इन्द्रों की तीन परिषदाएँ होती हैं :-१०३
तुंबा, त्रुटिता और प्रेत्या । तुंबा को आभ्यन्तर परिषद् कहते हैं, तो त्रुटिता को मध्यम परिषद कहते हैं और प्रेत्या को बाह्य परिषद कहते हैं । इन परिषदों में देवों और देवियों की संख्या तथा उनकी स्थिति पूर्ववर्णित वाणव्यंतर काल इन्द्र के समान ही होती है।
सूर्य और चंद्र का अधिकार समान रूप से कहा गया है । प्रत्येक इंद्र का विशेष रूप से स्वरूप कथन निम्न है५. चन्द्र इंद्र-अग्रमहिषियाँ :
चंद्र इंद्र की अग्रमहिषियों का उल्लेख जीवाजीवाभिगम सूत्र में किया गया हैं ।१०४ चन्द्रदेव के अंत:पुर में अग्रमहिषिया होती है ।
ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र की चार अग्रमहिषियाँ १) चन्द्रप्रभा २) ज्योत्सनाभा ३) अर्चिमाला और ४) प्रभंकरा ।
प्रत्येक अग्रमहिषी चार हजार देवियों की विकुर्वणा कर सकती है । इनका कुल मिलाकर १६,००० देवियों का परिवार है । ६. भोगोपभोग :
चंद्र इंद्र की अग्रमहिषियाँ एवं परिवार होने पर भी वह अंतःपुर में भोगोपभोग नहीं कर पाता क्योंकि चन्द्र के चन्द्रावतंसक विमान की सुधर्मा सभा में माणवक चैत्यस्तंभ में वज्रमय गोल मंजुषाओं में बहुत सी जिनदेव की अस्थियाँ रखी हुई होती हैं । इसलिए वहाँ पर ज्योति राज चन्द्र और अन्य विविध ज्योतिषी देव, और देवियाँ पूजा, अर्चना, करते हैं। इस कारण चंद्रराजा चन्द्रावतंसक विमान में चंद्रसिंहासन पर भोगोपभोग नहीं कर सकता ।
जब ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र विमान में सुधर्मा सभा में सिंहासन पर अपने ४००० सामानिक देव, १६००० आत्मरक्षक देव तथा अन्य बहुत से ज्योतिषी देव
और देवियों के साथ घिरे हुए होते हैं, तब जोर-जोर से बजाये गये नृत्य में, गीत, वार्जित्रो, तन्त्री, तल, ताल, त्रुटिक, घन, मूंदग आदि के बजाये जाने से उत्पन्न शब्दों से चन्द्र उन दिव्य भोगोपभोगों को भोग सकने में समर्थ होता हैं । पर अपने अंतःपुर के साथ मैथुनबुद्धि से भोग भोगने में वह समर्थ नहीं होता
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