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के ऊपर निवास करते हैं। ये पल्योपम के आयुष्यवाले होते हैं। ये नित्य प्रमुदित रहते हैं । क्रीड़ा करते फिरते हैं, सुर समागम में लीन रहते हैं, इच्छा मुताबिक विचरण करते हैं ।
___इस प्रकार ये तिर्यक्जुंभक देवों का वर्णन किया गया है। अब इन व्यंतर देवों के मुख्य भेदों का स्वरूप देखें ।।
मुख्य आठ व्यंतरो का परिचय :-८४ १. किन्नर :
व्यंतर निकाय के ये किन्नर देव प्रियंगु के वृक्ष जैसे श्याम वर्ण के, शांत, सौम्य दर्शनवाले, सुंदर और स्वच्छ मुखाकृति वाले, मुकुट और मौलियाँ पहनते है । अशोकवृक्ष का चिह्न इनकी ध्वजा में होता है ।। २. किंपुरुष :
ये किंपुरुष देव उरू और बाहु से अधिक शोभावाले, मुख से अधिक भास्वर, विविध आभरणों से शोभायमान, विचित्र पुष्पमाला और विलेपन वाले होते हैं । इनके मुकुट चंपक वृक्ष की ध्वजा चिह्न से युक्त होते हैं । ३. महोरग :
ये देव महावेग वाले, सौम्य, सौम्यदर्शनवाले, मोटे शरीरवाले, विस्तृत और पुष्ट स्कन्ध तथा ग्रीवावाले, विविध प्रकार के विलेपन युक्त, और विविध आभरणों से भूषित, श्याम वर्ण वाले, स्वच्छ और उज्ज्वल होते हैं । इन देवों का चिह्न नाग वृक्ष की ध्वजा का होता है। ४. गान्धर्व :
__ ये व्यन्तर देव शुद्ध-स्वच्छ, लाल वर्णवाले, गंभीर और घन शरीर को धारण करनेवाले होते हैं । इनका स्वरूप देखने में प्रिय होता है । सुंदर रूप तथा सुंदर मुखाकृतिवाले और मनोज्ञ स्वर के धारक होते हैं । मस्तक पर मुकुट और गले में हार से विभूषित होते हैं। ये तुबंरू वृक्ष की ध्वजा का चिह्न धारण करते
५. यक्ष :
ये देव निर्मल श्यामवर्ण वाले और गंभीर होते हैं । मनोज्ञ, देखने में विचित्र, मान-उन्मान तथा प्रमाणोपेत होते हैं । हाथ-पैर के तलिये नख, जिह्न,
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