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होठ यह सब लाल रंग के होते हैं। इसका मुकुट प्रकाशमान होता है। ये विविध प्रकार के रत्नों और आभूषणों से भूषित होते हैं । इनका वटवृक्ष की ध्वजा का चिह्न होता है । ६. राक्षस :
ये शुद्ध और निर्मल वर्णवाले तो होते हैं पर भीमकाय और देखने में भयंकर होते हैं । विकराल लाल और लंबे होंठवाले, तपे हुए सुवर्णमय आभूषणोंवाले, विविध प्रकार के विलेपनों से युक्त होते हैं । इनका चिह्न खट्वांग की ध्वजा का है। ७. भूत :
इनका वर्ण श्याम होता है, पर सुंदर रूपवाले होते हैं । सौम्य स्वभाववाले, अतिस्थूल और अनेक प्रकार के विलेपनों से युक्त होते हैं । सुलस ध्वजा का चिह्न होता हैं । ८. पिशाच :
स्वभाव से चंचल, देखने में रूपवंत, सौम्य दर्शनवाले, हाथ में और मस्तक पर मणिरत्नमय भूषणवाले, कदंब वृक्ष की ध्वजा के चिह्नवाले, ऐसे पिशाच देव होते हैं ।
इस प्रकार से व्यंतर देवों के स्वभाव, वर्ण, चिह्न स्वरूप उपलब्ध होता है । अब इन देवों के स्वरूप का सामान्य निरूपण प्रस्तुत है ।
२. सामान्य स्वरूप निरूपण ये देव अव्यवस्थित चित्त के होने से अत्यन्त चपल, क्रीडातत्पर और परिहास-प्रिय होते हैं । इनकी हास्य, गीत और नृत्य में गंभीर अनुरक्ति रहती है । ये वनमाला, कलगी, मुकुट, कुण्डल तथा इच्छानुसार विकुर्वित आभूषणों से भली-भाति मण्डित रहते हैं । सभी ऋतुओं में होने वाले सुगन्धित पुष्पों से रचित लम्बी, शोभनीय, सुन्दर एवं खिलती हुई विचित्र वनमाला से उनका वक्षःस्थल सुशोभित रहता है । ये अपनी कामनानुसार काम-भोगों का सेवन करते हैं । ये इच्छानुसार रूप एवं देह के धारक होते हैं । नाना प्रकार के वर्णों वाले श्रेष्ठ, विचित्र, चमकीले वस्त्रों के धारक होते हैं । ये विविध देशों की वेशभूषा धारण करते हैं । ये प्रमोद, कन्दर्प (काम-क्रीडा)कलह केलि ओर कोलाहल प्रिय होते
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