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२ अयन
= १ वर्ष ८४ लाख वर्ष
= १ पूर्वांग ८४ लाख पूर्वांग
= १ पूर्व ८४ लाख पूर्व
= १ पर्वांग ८४ लाख पर्वांग
= १ पर्व ८४ लाख पर्व
= १ नयुतांग ८४ लाख नयुतांग
= १ नयुत ८४ लाख नयुत
= १ कुमुदांग ८४ लाख कुमुदांग
= १ कुमुद ८४ लाख कुमुद
= १ पद्मांग ८४ लाख पद्मांग
= १ पद्म ८४ लाख पद्म
= १ नलिनांग ८४ लाख नलिनांग
= १ नलिन इसी प्रकार आगे कमलांग-कमल, तुट्यांग-तुट्य, अटटांग-अट, अममांगअमम, हूहूअंग-हूहू, लतांग-लता, महालतांग-महालता, शिर:-प्रकम्पित, हस्तप्रहेलित और अचलात्म को उत्तरोत्तर ८४ लाख गुणित जानना चाहिए ।
ये सभी संख्याएँ संख्यात गणना के ही भीतर हैं । पल्योपम और सागरोपम आदि असंख्यात-गणना के भीतर हैं । इन सबसे ऊपर अन्त-विहीन जो राशि है, वह अनन्त कहलाती है ।२५
मनुष्य एवं तिर्यञ्चों के निवास-स्थान "मनुष्य शब्द का उल्लेख अनेक स्थानोंपर किया जाता हैं । पर जैसे नारकी नरक में रहते हैं, देव विमान अथवा भवनों में रहते हैं उसी प्रकार मनुष्य और तिर्यंञ्चों कहाँ रहते हैं ?
यहाँ उनकी दो प्रकार से क्षेत्र आश्रित और पर्याय आश्रित स्वरूप से व्याख्या करते हैं ।
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