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असंख्यात कोटा-कोटि योजन प्रमाण आकाश को एक 'रज्जु' कहा जाता है । ऊर्ध्वलोक १८०० योजन न्यून सात रज्जुप्रमाण ऊँचा है । तिज़लोक १८०० योजन प्रमाण ऊँचा है और अधोलोक सात राज प्रमाण ऊँचा है । १. अधोलोक :
कटि-स्थानीय झल्लरी के समान आकार वाले मध्यलोक के नीचे सात पृथ्वियाँ हैं-धम्मा, वंशा, सेला, अंजना, अरिण्य, मधा और माघवती । रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा और महामतःप्रभा-इनके गोत्र कहे गये हैं । इनमें से पहली रत्नप्रभा के तीन भाग हैं- खरभाग, पंकभाग और अब्बहुलभाग । इनमें खरभाग सोलह हजार योजन मोटा है । पंकभाग-चौरासी हजार योजन और अब्बहुलभाग अस्सी हजार योजन मोटा है । इस प्रकार रत्नप्रभा पृथ्वी की मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजन है । इस तीन विभाग वाली रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे असंख्यात हजार योजन के अन्तराल के बाद दूसरी शर्करा पृथ्वी है । यह एक लाख बत्तीस हजार योजन मोटी है । इसके नीचे पुनः असंख्यात हजार योजन नीचे जाकर तीसरी बालुका पृथ्वी है । इसकी मोटाई एक लाख अट्ठाईस हजार योजन है । इस तीसरी पृथ्वी का तल भाग मध्यलोक से दो रज्जु प्रमाण नीचा है । तीसरी पृथ्वी से असंख्यात हजार योजन नीचे जाकर चौथी पंकप्रभा पृथ्वी है । इसकी मोटाई एक लाख चौबीस हजार योजन है । इस पृथ्वी का तलभाग मध्यलोक से तीन रज्जु नीचा है । उपर्युक्त पाँचवीं धूमप्रभा पृथ्वी है । इसकी मोटाई एक लाख बीस हजार योजन है । इसका तल भाग मध्यलोक से चार रज्जु नीचा है । फिर अतंराल छट्ठी तमःप्रभा पृथ्वी है । इसकी मोटाई एक लाख सोलह हजार योजन है । इसका तल भाग मध्यलोक से पाँच रज्जु नीचा है । फिर अंतराल उपयुक्त प्रमाणे सातवीं तमःतमप्रभा पृथ्वी है । इसकी मोटाई एक लाख आठ हजार योजन हैं ।२८ इसका तल भाग मध्यलोक से छह रज्जु नीचा है ।
रत्नप्रभा पृथ्वी के एक लाख अस्सी हजार योजन प्रमाण क्षेत्र में से ऊपर नीचे के एक-एक हजार योजन भाग को छोड़कर मध्यवर्ती क्षेत्र में ऊपर भवनवासियों के सात करोड़ बहत्तर लाख भवन हैं२९, तथा नीचे नारकियों के तीस लाख नारकावास हैं । किन्तु त्रिलोकप्रज्ञप्ति, तत्त्वार्थ-वार्तिक आदि दि० ग्रंथो में इससे भिन्न उल्लेख पाया जाता है ।३१
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