________________
४. दि० शास्त्रों में घनोदधिवात का वर्ण गोमूत्र-सम, घनवात का मूंग-समान और
तनुवात का अव्यक्त वर्ण कहा गया है । ५. देखें टिप्पण ४ । ६. भगवती एवं स्थानांगवृत्ति ७. गणितानुयोग, भूमिका पृ. ७७ ८. गणितानुयोग, भूमिका पृ. ७८. ९. जीवा० प० ३, उ० ९ सु. १३८; १०. जीवा० प० ३, ३०९ सु. १३६ ११. दिगंबर परम्परा के अनुसार रत्नप्रभा के तीन भागों में से प्रथम भाग के एक
एक हजार योजन क्षेत्र को छोड़कर मध्यवर्ती १४ हजार योजन के क्षेत्र में किन्नर आदि सात व्यन्तर के देवों के, तथा नागकुमार आदि नौ भवनवासी देवों के आवास हैं । तथा रत्नप्रभा के दूसरे भाग में असुरकुमार, भवनपति और राक्षस व्यन्तरपति के आवास हैं । रत्नप्रभा के तीसरे भाग में नारकों के आवास हैं ।
(देखो तिलोयपण्णति अ० ३ गा० ७ । तत्त्वार्थवार्तिक अ० ३ सू० ९) १२. उद्धारित गणितानुयोग भूमिका पृ. ७८ १३. वही १४. गणितानुयोग भूमिका पृ. ७९ १५. वही १६. वही १७. दिंगबर परम्परा में अन्तरद्वीपों की संख्या ९६ बतलायी गयी है । १८. तिलोयपण्णत्ति अ० ४; गा० २४८९, तथा २५१२ आदि । १९. गणितानुयोग भूमिका पृ. ७९. . २०. वही २१. गणितानुयोग भूमिका पृ. ८१ २२. वही २३. गणितानुयोग भूमिका पृ. ८२
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org