________________
६६
'पल्योपम' का अर्थ और भेद देवों की आयु का कालप्रमाण बतलाने के लिये 'पल्योपम' शब्द का प्रयोग किया है । जो अति दीर्घ काल का बोधक है ।
काल अनन्त है । काल की अवधि की दिन, मास, और वर्षों के रूप में गणना की जाती हैं, उसके लिये तो जैन वाङ्मय में घड़ी, घंटा, पूर्वांग पूर्व, आदि शीर्ष प्रहेलिका पर्यन्त संज्ञाये निश्चित की है। परन्तु इसके बाद जहाँ समय की अवधि इतनी लम्बी हो कि उसकी गणना वर्षों में न की जा सके, वहाँ उपमाप्रमाण की प्रवृत्ति होती है । अर्थात् उसका बोध उपमाप्रमाण द्वारा कराया जाता है । उस उपमाकाल के दो भेद हैं-पल्योपम और सागरोपम ।
__ पल्य या पल्ल का अर्थ है कुआ अथवा धान्य को मापने का पात्र विशेष । उसके आधार या उपमा से की जाने वाली कालगणना की अवधि पल्योपम कहलाती है ।१२
पल्योपम के तीन भेद हैं१) उद्धारपल्योपम २) अद्धापल्योपम और ३) क्षेत्रपल्योपम । ये तीनों भी प्रत्येक बादर'३ और सूक्ष्म के भेद से दो-दो प्रकार के हैं ।१४
उद्धार-पल्योपम उत्सेधांगुल५ द्वारा निषन्न एक योजन प्रमाण लम्बा, एक योजन चौड़ा और एक योजन गहरा एक गोल पल्य (गड्डा)- बनाकर उसमें एक दिन से लेकर सात दिन तक की आयु वाले भोगभूमिज मनुष्यों के बालानों को इतना ठसाठस भरे कि न उन्हें आग जला सके, न वायु उड़ा सके और न जल का ही प्रवेश हो सके । इस प्रकार से भरे हुए उस कुए में से प्रतिसमय एक-एक बालाग्रबालखंड निकाला जाये तो निकालते-निकालते जितने समय में वह कुआ खाली हो जाये उस काल-परिमाण को उद्धार पल्योपम कहते हैं । उद्धार का अर्थ है निकालना । अतएव बालों के उद्धार या निकाले जाने के कारण इसका उद्धारपल्योपम नामकरण किया गया है । इसी को बादर उद्धार पल्योपम कहते
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org