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३. समस्त ज्योतिष्क
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४. (अ) सोधर्म से अच्युतकल्प ज. (ब) सनत्कुमार देवों के तक. ज." "
"" उ.६ हाथ की (क) माहेन्द्रकल्प के देवों ज."" (ख) बह्मलोक लान्तक देवों. ज. ""
उ.५ हाथ की (ग) महाशुक्र सहस्त्रार देव ज."" हाथ की (घ) आनत-प्राणत-आरण ज." " उ. ३ हाथ की ___अच्युत कल्प के देव (ड) नवग्रैवेयकों के देव ज." " उ. २ हाथ की (ठ) पंच अनुत्तरौपपातिक देव ज."" उ. १ हाथ की
इस प्रकार शरीर की अवगाहना जघन्य एवं उत्कृष्ट रूप से तालिका में स्पष्ट किया गया है।
यहाँ परिग्रह शब्द से विमानो का परिवार आवासों की संख्या का उल्लेख
३. परिग्रह :
परिग्रह अर्थात् संचय करना । लोभ कषाय के उदय से विषयों के संग को परिग्रह कहते हैं । स्वर्गों में विमानों का परिग्रह होता है जो कि ऊपर-ऊपर कम होता जाता है। वह इस प्रकार है-पहले स्वर्ग में बत्तीस लाख, दूसरे में अट्ठाईस लाख, तीसरे में बारह लाख, चौथे में आठ लाख, पाँचवे में चार लाख, छठे में पचास हजार, सातवें में चालीस हजार, आठवें में छ: हजार, नवें से बारहवें तक में सात सौ, अघोवर्ती तीन ग्रैवेयकों में एक सौ ग्यारह, मध्यवर्ती तीन ग्रैवेयकों में एक सौ सात, ऊपर के तीन ग्रैवेयकों में सौ और अनुत्तर में केवल पाँच विमान हैं । इस प्रकार देवों का परिग्रह होता हैं । ४. अभिमान :
मान कषाय के उदय से उत्पन्न हुए अंहकार को अभिमान कहते हैं । स्थान, परिवार, शक्ति, विषय, विभूति, स्थिति आदि के कारण अभिमान उत्पन्न होता है । यह अभिमान कषायों की मन्दता के कारण ऊपर-ऊपर के देवों में
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