________________
उत्तरोत्तर कम होता जाता है। नीचे-नीचे के देवों की अपेक्षा ऊपर ऊपर के देव अधिक शक्तिशाली होते हुए भी उनका अभिमान कम-कम होता है । ५ अधिक विशेषताएं
आगे उल्लिखित लक्षणों के उपरांत देवों की कुछ और भी विशेषताएँ आगमों में पाई जाती है । ये विशेषताएं निम्न हैं१. उच्छ्वास :
प्रत्येक प्राणी को जीवन जीने के लिए श्वासोच्छास की आवश्यकता है । चाहे वह मुनि हो, चक्रवर्ती हो, राजा हो अथवा किसी भी प्रकार का देव हो, नारक हो अथवा एकेन्द्रिय से लेकर तिर्यंच-पंचेन्द्रिय तक किसी भी जातिका जीव हो । इसलिए श्वासोच्छासरूप प्राण का अत्यन्त महत्व है । देवों में जो देव जितनी अधिक आयु वाला होता है, वह उतना ही अधिक सुखी होता है और जो जितना अधिक सुखी होता है, उसके उच्छास-निःश्वास का विरहकाल उतना ही अधिक लम्बा होता है, क्योंकि उच्छ्वास-निःश्वासक्रिया दुःखरूप है।
जैसे दस हजार वर्ष की आयुवाले देवों का एक-एक उच्छास सात-सात स्तोक में होता है । एक पल्योपम की आयुवालें देवों का उच्छ्वास एक दिन में एक ही होता है । सागरोपम की आयुवाले देवों के विषय में यह नियम है कि जिनकी आयु जितने सागरोपम की है उनको एक-एक उच्छवास उतने पक्ष में होता है । इस प्रकार ऊपर ऊपर के देवों का श्वासोश्वास कम होता जाता है । यहाँ जघन्य व उत्कृष्ट श्वासोश्वास को तालिका से स्पष्ट किया जा रहा है
जघन्यतः उत्कृष्टतः १) भवनपति देव सात स्तोक एक पक्ष(मुहूर्तपृथक्त्व) २) वाणव्यन्तर देव सात स्तोक एक पक्ष(मुहूर्त्तपृथक्त्व) ३) ज्योतिष्क देव मुहूर्तपृथक्त्व मुहूर्तपृथक्त्व ४) वैमानिक देव मुहूर्तपृथक्त्व तेतीस पक्ष
देवों के जघन्य और उत्कृष्ट उच्छासों का वर्णन प्रज्ञापना२ में मिलता हैं । २. आहार
सभी प्राणी को जीवन यापन करने के लिए आहार करना आवश्यक होता है । देवों का आहार चार प्रकार का है-वर्णवान्, रसवान गन्धवान् और स्पर्शवान् ।३
देव
_Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org,