________________
७०
वैक्रियशरीर वालों की विभूषा
जो देव इस शरीर वाले होते हैं वे हारों से सुशोभित वक्षस्थल वाले दसों दिशाओं को उद्योतित करने वाले, प्रभासित करने वाले होते हैं । अवैक्रियशरीर :
जो देव इस शरीर वाले होते हैं वे आभरण और वस्त्रो से रहित हैं और स्वाभाविक विभूषण से सम्पन्न हैं ।
देवियाँ की विभूषा उत्तरवैक्रियशरीर :
जो देवियाँ इस शरीर वाली है, वे स्वर्ण के नूपुरादि आभूषणों की ध्वनि से युक्त हैं तथा स्वर्ण की बजती किंकिणियों वाले वस्त्रों को तथा उद्भट वेश को पहनी हुई हैं, चन्द्र के समान उनका मुखमण्डल है, चन्द्र के समान विलास वाली हैं, अर्धचन्द्र के समान भाल वाली हैं । वे रंगार का साक्षात् मूर्ति हैं, और सुन्दर परिधान वाली हैं । वे सुन्दर यावत् दर्शनीय, प्रसन्नता पैदा करने वाली और सौन्दर्य की प्रतिक हैं । अवैक्रियशरीर :
इस शरीरवली देवियां, आभूषणों और वस्त्रों से रहित स्वाभाविक-सहज सौन्दर्य वाली हैं ।
सौधर्म-ईशान को छोड़कर शेष कल्पों में देव ही हैं, वहाँ देवियां नही हैं । अतः अच्युतकल्प पर्यन्त देवों की विभूषा का वर्णन उक्त रीति के अनुसार है । ग्रैवेयकदेवों की विभूषा आभरण और वस्त्रों से रहित हैं। वे स्वाभाविक विभूषा से सम्पन्न हैं। वहा देवियां नहीं हैं । इस प्रकार अनुत्तर विमान के देवों की विभूषा होती है ।२२
इस प्रकार देव-देवियाँ की विभूषा होती है ।
विकुर्वणा :
वैक्रिय शरीर से देवों के द्वारा भिन्न भिन्न रूपों का निर्माण करना विकुर्वणा कहलाता है।
विकुर्वणा के दो प्रकार हैं
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org