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अन्तरद्वीप प्रथम हिमवान पर्वत की चारों विदिशाओं में तीन-तीन सौ योजन लवणसमुद्र के भीतर जाकर चार अन्तर द्वीप हैं । इसी प्रकार लवण-समुद्र के भीतर चार सौ, पाच सौ, छह सौ, सात सौ, आठ सौ और नौ सौ योजन आगे जाकर चारों विदिशाओं में चार-चार अन्तर द्वीप और हैं । इस प्रकार चुल्ल हिमवान् के (७X४=२८) सर्व अन्तर द्वीप २८ होते हैं । इसी प्रकार छठे शिखरी पर्वत के लवण समुद्रगत २८ अन्तर द्वीप हैं । दोनों ओर के मिलाकर ५६ अन्तर द्वीप हो जाते हैं ।१७ इनमें एकोरूक आदि अनेक आकृतियों वाले मनुष्य रहते हैं । वे कल्पवृक्षों के फल-फूलों को खाकर अपना जीवन-निर्वाह करते हैं । स्त्री-पुरुष के रूप में युगल उत्पन्न होते हैं और साथ ही मरते हैं । इनके मरण के कुछ समय पूर्व युगल-सन्तान उत्पन्न होती है ।१८
ऊपर जिन छह वर्षधर पर्वतों के नाम कहे गये हैं, उनके ऊपर क्रमशः पद्म, महापद्म, तिगिच्छ, केशरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक नाम का एक-एक हुद या सरोवर है। इन्हीं सरोवरों के मध्य में पद्मों (कमलों)का अवस्थान बतलाया गया है ।१९
विदेह क्षेत्र में मेरू पर्वत के ईशानादि चारों कोनों में क्रमशः गन्धमादन, माल्यवान, सौमनस, और विद्युत्प्रभ नाम वाले चार पर्वत हैं । इनसे विभक्त होने के कारण मेरू के दक्षिणी भाग को देवकुरू और उत्तरी भाग को उत्तरकुरू कहते हैं । ये दोनों ही क्षेत्र भोगभूमि कहलाते हैं । मेरू के पूर्ववर्ती भाग को पूर्वविदेह और पश्चिम दिशा वाले भाग को ऊपर या पश्चिम-विदेह कहते हैं । इन दोनों ही स्थानों में सीता-सीतोदा नदी के बहने से दो-दो खण्ड हो जाते हैं । इन चारों ही खण्डों में कर्मभूमि है । इन्हीं में सीमन्धर आदि तीर्थंकर सदा विहार करते और धर्मोपदेश देते हुए विराजते हैं और आज भी वहाँ के पुरुषार्थी मानव कर्मों का क्षय करके मोक्ष जाते हैं ।२० ।
ज्योतिष लोक जम्बूद्वीप के समतल भाग से ७९७ योजन की ऊँचाई से लेकर ९०० योजन की ऊँचाई तक ज्योतिष्क लोक है, जहाँ पर सूर्य, चन्द्र, ग्रह नक्षत्र और तारा, इन पाँच जाति के ज्योतिषी देवों के विमान हैं। ये सभी विमान ज्योतिर्मान
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