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३५६ ही दिन होते है ।
जैन मान्यातानुसार लवण-समुद्र में ४ सूर्य और ४ चन्द्र है । धातकीखण्ड में १२ सूर्य १२ चन्द्र हैं । कालोद-समुद्र में ४२ सूर्य और ४२ चन्द्र है । पुष्करार्ध-द्वीप में ७२ सूर्य और ७२ चन्द्र हैं । पुष्करार्ध के परवर्ती अर्ध भाग में भी ७२-७२ ही सूर्य-चंद्र हैं। इससे आगे स्वयम्भूरमण-समुद्र पर्यन्त सूर्य और चन्द्र की संख्या उत्तरोत्तर दूनी-दूनी है ।
एक चन्द्र के परिवार में एक सूर्य, अट्ठाईस नक्षत्र, अठ्यासी ग्रह और ६६९७५ कोड़ाकोडी तारे होते हैं । जम्बुद्वीप में दो चन्द्र होने से नक्षत्रादि की संख्या दूनी जाननी चाहिए । इस प्रकार सारे ज्योतिर्लोक में असंख्य सूर्य, चन्द्र है । इनसे अट्ठाईस गुणित नक्षत्र और अठ्यासी गुणित ग्रह हैं । तथा सूर्य से ६६९८७५ कोडाकोडी गुणित तारे हैं ।
मनुष्यलोकवर्ती ज्योतिष्क-विमान यद्यपि स्वयं गमन-स्वभावी है, तथापि आभियोग्य जाति के देव सूर्य-चन्द्रादि विमानों को गतिशील बनाये रखने में निमित्त-स्वरूप हैं । ये देव सिंह, गज, बैल और अश्व का आकार धारण करके
और क्रमशः पूर्वादि चारों दिशाओं में संलग्न रहकर सूर्यादि को गतिशील बनाये रखते हैं।
उर्ध्वलोक मेरू-पर्वत को तीनों लोक का विभाजक माना गया है । मेरू के अधस्तन भाग को अधोलोक और मेरू के ऊपर के भाग को उर्ध्व-लोक कहते हैं । उर्ध्वलोक में श्वेताम्बरीय मान्यतानुसार स्वर्गों की संख्या बारह है और दिगंबरीय मान्यतानुसार सोलह है । इन स्वर्गों में कल्पवासी देव और देवियाँ रहती हैं । इनमें ऊपर नौ ग्रैवेयक, उनके ऊपर दिगंम्बरीय मान्यतानुसार नौ अनुदिश और उनके ऊपर पाँच अनुत्तर विमान हैं । इन विमानों में रहनेवाले देव कल्पातीत कहलाते हैं, क्योंकि उनमें इन्द्र, सामानिक आदि कल्पना नहीं है, वे उससे परे हैं । इन विमानों में रहने वाले देव एक समान वैभव वाले हैं और सभी अपने आपको इन्द्र स्वरूप अनुभव करते हैं, इसलिए वे अहमिन्द्र (अहं+ इन्द्रः) कहलातै
स्वर्गों में जो कल्पवासी देव रहते हैं, उनमें इन्द्र, सामानिक: त्रायास्त्रिंश, पारिषद, आत्मरक्ष, लोकपाल, अनीक, प्रकीर्णक, आभियोग्य और किल्विषिक नाम
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