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हि०१० सा० की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि था। दोनों कौमों में पारस्परिक सद्भाव सुदृढ़ हुआ। मुसलमान सरदार-सामंत भी होली दीवाली मनाते थे और हिन्दु महर्रम, ईद आदि में हिस्सा लेते थे। सारांश यह कि धर्म भारतीय समाज के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में अलगाव का नहीं बल्कि ऐक्य का मुद्दा था। अलगाव के मुद्दे दूसरे थे जैसे वर्ग भेद, जाति भेद और स्थान भेद आदि। हिन्दु मुसलमानों को आपस में लड़ाने उन्हें धर्म, भाषा, संस्कृति के आधार पर बॉटने का काम बीसवीं शती में अंग्रेजों ने अपनी सुविचारित 'नीति बॉटो और राजकरों' के आधार पर किया। साहित्यिक और धार्मिक परिस्थिति
१९वीं (वि०) हिन्दी साहित्य के इतिहास में रीतिकाल का उत्तरार्द्ध काल है। इस काल में 'यथा राजा तथा प्रजा' की स्थिति थी। राजा, नवाब, सामंत, जागीरदार, जमींदार, भूस्वामी सभी विलासिता और ऐय्यासी में डूबे हुए और उनके आश्रित दरबारी कवि, साहित्यकार भी उनके मनपसंद की रचनायें करते थे। इसलिए इस काल के हिन्दी साहित्य में श्रंगार की प्रधानता थी। नायक-नायिका भेद, नखशिख वर्णन प्रमुख काव्य विषय था और रूढ़ि तथा रीति ग्रस्त अभिव्यंजना शैली प्रचलित थी। यही दशा कमोवेश तत्कालीन प्राय: सभी भारतीय प्रादेशिक भाषाओं के साहित्य की भी थी। साहित्य में समाज प्रतिबिंबित हो रहा था। लेकिन श्रेष्ठ साहित्य केवल समाज का प्रतिबिम्ब ही नहीं होता बल्कि समाज का मार्गदर्शन भी होता है। हिन्दी का जैन साहित्य दूसरे प्रकार का है। उसमें शृंगार नायक नायिका भेद और नखशिख वर्णन के बजाय जैनधर्म, दर्शन, चिंतन, व्रत-उपवास आदि के वर्णनों की प्रधानता है। क्योंकि यह साहित्य प्राय: जैन साधुओं और नैष्ठिक श्रावकों द्वारा लिखा गया है। इसलिए इस साहित्य में प्रारम्भ से अब तक धार्मिक आख्यान, चरित्, कथा, तीर्थकरों के पंच कल्याण और उनके उपदेश आदि के साथ जैन धर्म-दर्शन सम्बन्धी आगमों और पुराणों, चरितकाव्यों के आधार पर हिन्दी भाषा में रचनायें होती रही हैं। इसलिए कुछ विद्वानों ने इस साहित्य पर सांप्रदायिक साहित्य होने का तोहमत लगा कर इसे साहित्येतिहास के क्षेत्र से बाहर कर दिया था परंत इतने विशाल साहित्य भण्डार में ऐसी अनेकानेक कृतियाँ उपलब्ध हई जो किसी भी साहित्य के टक्कर की हैं जिनमें भरपूर, साहित्यिक विशेषतायें हैं इसलिए इसे साहित्य में शामिल करने की जोरदार शिफारिस अनेक विद्वानों और समीक्षकों ने की। ऐसी विशेष परिस्थिति में इस साहित्य के अध्ययन के लिए जैन धर्म की तत्कालीन स्थिति का संक्षिप्त परिचय प्राप्त करना उपयोगी है। जैनधर्म__ जैन धर्म महावीर के बाद किसी समय वस्त्र पहनने और न पहनने के आधार For Private & Personal Use Only
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