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टेकचंद - टोडरमल
त्रिभुवन फिर तिरकाल तै तीर तिहारे आय। अंत- "संवत् अष्टादश सत जोय, और छबीस मिलावो सोय।
मास जेठ वदि आठे सार, ग्रंथ समापत को दिन धार। या ग्रंथ के अवधार ते, विधि पूरब बुधि होय। छंद ढाल जाने घनी, समुझै बुधजन जोय।। ताते भो निज हित चहो तो यह सीख सनाय।
वुधि प्रकाश सुं ध्याय के, बाढ़े धर्म सुभाव। इसमें धर्म संबंधी विविध विषयों का वर्णन किया गया है। इसकी अंतिम पंक्ति
पढ़ौ सुनौ सीखों सकल वुध प्रकाश कहंत; ता फल शिव अध नासि कैटेक लहो शिवसंत।१६६
टोडरमल
आप इस शती (१९वीं वि०) के महान सुधारक, तत्त्ववेत्ता और प्रसिद्ध गद्य लेखक माने जाते है। दिगम्बर सम्प्रदाय में इनकी ऋषि तुल्य मान्यता है। इनके पिता जोगीदास का निवास स्थान जयपुर था। इनकी माता का नाम रंभा देवी और पुत्रों का नाम हरीचंद और गुमानीराय था। ये खंडेलवाल श्रावक थे। कहा जाता है कि जयपुर राज्य के दीवान अमरचंद ने इनको अपने साथ रख कर विद्याभ्यास कराया था। ३२-३३ वर्ष की अल्पवय में सं० १८२५-२६ में इनका देहावसान हो गया था, इस प्रकार इनका जन्म सं० १७९३ वि० के आसपास होगा। इतनी अल्प आयु में आप इतना कार्य कर गये कि आश्चर्य होता है। आपके संबंध में पं० परमेष्ठी दास न्यायतीर्थ ने कहा है "श्रीमान पंडित प्रवर टोडरमल जी १९वीं शताब्दी के उन प्रतिभाशाली विद्वानों में है जिन पर जैन समाज ही नहीं सारा भारतीय समाज गौरव का अनुभव कर सकता है।" आपका अध्ययन गंभीर था। आप लेखन के अलावा भाषण कला में भी पटु थे। और राजसम्मानित महापुरुष थे। आपने कर्म सिद्धांत और जैन तत्व दर्शन को सुगम शैली और हिन्दी भाषा में सर्वसाधारण के लिए अपने ग्रंथों द्वारा सुलभ किया। आपकी सबसे प्रसिद्ध रचना 'गोमट्टसार वचनिका' में लब्धिसार और क्षपणसार भी सम्मिलित हैं। इसकी श्लोक संख्या ४५ हजार है। यह नेमिचंद के प्राकृत ग्रंथ गोमट्टसार की भाषा टीका है। त्रैलोक्यसार वचनिका भी प्राकृत ग्रंथ का भाषानुवाद है। इसकी श्लोक संख्या करीब १२ हजार है। गुण भद्रस्वामी कृत संस्कृत ग्रंथ पर आधारित 'आत्मानुशासन वचनिका' भतृहरि के वैराग्यशतक जैसी हृदयग्राही रचना है। पुरुषार्थ सिद्ध्युपाय वचनिका और मोक्ष प्रकाश
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