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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास मन बच कायाईं करी, आगम वाणी हियइडइ धरी। अंत- संवत सतर अकासी आ वरसे तवन रचुं खंते जी,
जग अनुसारे जोई कीधी, बारे गाथा में तंते जी। श्री वीरविमल सेवा करतां, ऋद्धि कीरति बह पाया जी,
विशुद्ध विमल कहें संगे पुरुषोत्तम गुण गाया जी।३७८ विष्णु
ये संभवत: जैनेतर लेखक थे। इनकी कृति 'चंदन राजा ना दूहा (सं० १८२८ फाल्गुन कृष्ण १३, भोमवार, भुज) हिन्दी भाषा और विविध छंदो में लिखित है। इसका प्रारंभ देखिए
अलख नीरंजन एक, तूं देत सुवचन दात, सरसति को सुमिरन करुं, रचो चंद की बात। गनपति शुभ दीजे सगुन, बानी सरस विवेक, चंदराज की चोज सो, रचौं जु बात विशेक। जैन धर्म के ग्रंथ में कथा सुचोपइ जात,
विसुन सोई भाषा करी, चंद राय की बात।
इस उद्धरण से स्पष्ट है कि मूल पुस्तक जैन धर्म की थी; कवि विष्णु ने उसका भाषांतरण किया है। इसलिए इसे जैन साहित्य में स्थान दिया जाना उचित है।
कवि ने अपना परिचय इस प्रकार दिया है
वल्ला सुत जो विष्णु जी, लोहरवंशी लेख,
चंदराय की बात यह, प्रगट करी तिहिं पेख। रचनाकाल- संवत अठारे विसअठ, फागुन तेरस सांम,
भोमवार की प्रगट भइ, चंद बात तिहि नाम। चंदराय की बारता, विष्णु रची सो भारव,
आली सुत तकि अछर शावत मेरी ओ साख।३७९ वृद्धिविजय
रचना- 'चित्रसेन पद्मावती रास' प्राप्त प्रति का एक पृष्ठ नहीं है इसलिए गुरु परंपरा के संबंध में केवल 'तपगछ पंडित-------" पाठ मिला, आगे का पाठ न मिलने से गुरु परंपरा प्रारंभ में नहीं है किन्तु अपनी रचना 'चित्रसेन पद्मावती रास' (३ खंड सं० १८०९ वैशाख शुक्ल ६, मंगलवार, मधुमती) में कवि ने अपनी गुरु परंपरा दी
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