________________
सौभाग्यसागर - हरचंद
अंत
नाभिजी के नंद के चरन चित लाइये । आनंद के कंद जी को, पूजत सूरींद वृंद, औसो जिनराज छोड़, और कूं न ध्याइये । X X X X X X आदिनाथ आदिदेव, सुरनर सारे सेव, देवन के देव प्रभु, शिवसुख दाइये। प्रभु के पादारविंद, पूजत हरखचंद, मेटो दुखदंद सुख संपति बढ़ाइये ।
शासन नायक समरीये हो, भजे भवमय भीर, हरखचंद साहिबा हो तुम दूर करो दुखपीर । ४२४ यह रचना 'चौबीसी बीशी संग्रह में प्रकाशित है।
हरचरणदास
अंत -
आपने हिन्दी के रीतिकालीन प्रसिद्ध कवि बिहारी दास की रचना 'सतसई' की टीका 'बिहारी सतसई की टीका' हिन्दी पद्य में सं० १८३४ में संपन्न की । ४२५ हरचंद
आपकी रचना का शीर्षक है "पंच कल्याणक पाठ"; यह स्तवन है, इसकी रचना सं० १८३३ ज्येष्ठ शुक्ल सप्तमी को पूर्ण हुई। इसकी प्रारंभिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं
कल्याननायक नमौ, कल्प कुरुह कलकंद,
कल्मषदुर कल्यानकर, बुधि कुल कमल दिनंद। मंगलनायक वंदिनौ, मंगल पंच प्रकार, वर मंगल मुझ दीजिये, मंगल वरनन सार ।
यह मंगलमाला सब जन निधि है शिव शाला गल में धरनी; बाला ब्रध तरुन सब जग कौ, सुख समूह की है भरनी ।
२३७
रचनाकाल - व्योम अंगुल न नापिये, गनिये मधवा धार । उडगन मित भू पैडन्यौ, तयो गुन वरने सार । तीनि तीनि बसु चंद्र, संवत्सर के अंक
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org