Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Shitikanth Mishr
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 279
________________ २६८ भंग हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास (ख)- १९वीं शती में रचित जैनेतर कवियों की कतिपय प्रमुख मरुगुर्जर रचनाओं का विवरणहरदास भंगीपुराण (३३४ कड़ी, सं० १८०१,) आदि- पहिलो सरसतिमात प्रणमां, प्रणमुं ते सिर अक्षर परमा। भाजण भरम गुणेवी भ्रमां, नमो ईस उमया दसन मां। अंत- जमैं हरदास दूनो कर जोड़ि, कीया अपराध अछिमि कोडि। महेसर माफ करो मन माइ, प्रभुजी राखै तोरे पाये।१४ इनकी भाषा में 'माफ' जैसे शब्द मिलते हैं; भाषा मिश्र है। प्रह्लाद ने वेताल पचीसी की रचना सं० १८०७ में पुरानी हिन्दी में किया।१५ १८वीं सदी में भी एक प्रह्लाद नामक कवि हो गये हैं। इनका रचनाकाल मिश्रबन्धु विनोद में सं० १७३० बताया गया है।१६ वसु (वस्तो विप्र) रचना- विक्रम राय चरित्र (३७२ कड़ी सं० १८२४ से पूर्व), इसका प्रारंभ देखिये श्री वरदि वरदायक सदा, गजवदन गुण गंभीर, एकदंत अयोनी संभव, सबल साहस धीर। सरसती सामिणी वीनवू, बहु करनि पसाय, उजेणी ने राजीऊ, वरण किसि विक्रम राय। स्वेत अंबर पंगरया, हंसवाहन माय; कवि विप्र वसु ओम भणि, कर जोड़ि लागू पाया ओ विक्रमराय तणो चरित्र, भणि गुणि तस पुन्य पवित्र; कवि वस्तो कहि कर जोड़ि, विक्रम नामि संपद कोड़ि।१७ इस रचना में कवि ने अपना नाम वसु, वस्तो दोनों दिया है। उज्जयिनी के अंत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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