Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Shitikanth Mishr
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 296
________________ उपसंहार २८५ काव्य, कथाकाव्य, संधिकाव्य, रासो, स्तोत्र - स्तवन आदि विविध साहित्य- रुप प्रथमानुयोग के अन्तर्गत आते हैं। इस धार्मिक-साहित्य में शलाका पुरुषों या पात्रों को आदर्श या माध्यम बनाकर सामान्य व्यक्ति को संयम और तपश्चर्या का संदेश दिया जाता है । करणानुयोग में विश्व का भौगोलिक वर्णन है । चरणानुयोग का संबंध श्रावकों और साधुओं के अनुशासन-नियमन से है । द्रव्यानुयोग तत्वज्ञान की चर्चा करता है। इस प्रकार इन चार अनुयोगों में केवल प्रथमानुयोग का संबंध साहित्य से है। आगे जैन साहित्य (प्रथमानुयोग ) के कुछ विशिष्ट तत्वों का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है। कथानक रुढ़ि काव्य में कथानक रुढ़ियों का महत्वपूर्ण स्थान है। हिन्दी साहित्य की प्रायः सभी कथानक रुढ़ियों का पूर्व रुप मरुगुर्जर जैन साहित्य में उपलब्ध होता है। चित्रदर्शन, स्वप्नदर्शन, गुणश्रवण से प्रेमोत्पत्ति, शुक का संदेश - उपदेश, नायक की सिंहल द्वीप यात्रा, समुद्रयात्रा में तूफान से जहाज का ध्वस्त होना, नायक नायिका का वियोग, मिलन, विमाता का कोप, देवी देवताओं की कृपा, शाप आदि नाना कथानक रुढ़ियों का पूर्वरुप हमें मरुगुर्जर जैन साहित्य में मिलता है। कथा शिल्प मरुगुर्जर जैन साहित्य से हमें विरासत के रुप में कथाशिल्प, काव्यरुप और छन्द, ढाल, देशी आदि काव्य उपकरणों का प्रभूत अवदान प्राप्त हुआ है। अधिकतर जैन चरित काव्य संधियों में विभक्त है। प्रत्येक संधि अनेक कड़वकों से मिलकर बनती है। कड़वक की समाप्ति धत्ता से होती है। इस प्रकार की शैली सूफी प्रेमाख्यानों में खूब प्रचलित हुई। आचार्य शुक्ल ने लिखा है कि चरित काव्य के लिए जैनकाव्य में अधिकतर चौपाई और दोहों की पद्धति ग्रहण की गई है । पुष्पदंत के आदि पुराण और उत्तरपुराण से प्रेरणा लेकर यह परंपरा सूफियों के प्रेमाख्यान और तुलसी के मानस तथा छत्रप्रकाश, ब्रजविलास आदि परवर्त्ती आख्यान ग्रंथों में चलती रही। छंद योजना छंदों के क्षेत्र में अपभ्रंश और मरुगुर्जर जैन साहित्य की देन मौलिक है। मात्रिक छंदों में तुक अथवा अन्त्यानुप्रास के द्वारा लय और संगीत का संचार काव्य में पहिली बार यहीं किया गया। अन्त्यानुप्रास का प्रयोग न तो संस्कृत काव्य में मिलता है और न प्राकृत में; अतः परवर्ती भाषा-साहित्य को महती और मौलिक देन है। जिस प्रकार श्लोक का संबंध संस्कृत काव्य से, गाथा या गाहा का प्राकृत काव्य से है उसी प्रकार दूहा या दोहा, चौपाई, सोरठा, छप्पय आदि मात्रिक छंद मरुगुर्जर में आये । अतः हिन्दी For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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