Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Shitikanth Mishr
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 289
________________ २७८ हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास नवतत्व बाला०, पट्टावली, शत्रुजय महात्म्य बाला०, जंबू अध्ययन चरित्र बाला०, नंदी सूत्र बाला०, प्रज्ञापना सूत्र बाला०, चित्रसेन चरित्र बाला०, चउशरण पयत्रा बाला०, भगवत् गीता भाषा टीका, योग विधि, दंडक नोटवार्थ, ज्ञानपंचमी कथा बाला०, पांच कर्म ग्रंथ बाला, गौतम पृच्छा बाला०, दशवैकालिक सूत्र बाला०, विवाह पडल बाला० ऊववाई सूत्र बाला०, नवकार बाला०, दश प्रत्याख्यान बाला०, जीव विचार बाला०, जगदेव परमार नी वार्ता, विवेक मंजरी वृत्ति बाला०, रुपसेन कथा पर बाला०, सकलार्हत बाला०, धन्य (धन्ना) चरित्र सस्तवक; आवश्यक सूत्र बाला०, जीव विचार बाला०, ज्ञाता सूत्र बाला०, दानकल्पद्रुभ बाला०, प्रतिष्ठा विधि, षट्पंचाशिका सस्तबक, सूसढ़ चरित्र बाला०, जीव विचार टबो, संत्तर भेदी पूजा बाला०, गणिपति चरित्र बाला०, रुपसेन चरित्र बाला०, चमत्कार चिंतामणि बाला०, क्षेत्रसमास बाला०, आराधना सूत्र बाला०, नंदी सूत्र बाला०, चित्रसेन पद्मावती बाला०, पक्खी सूत्र बाला०, भवभावना बाला०, गिरिनार कल्प बाला०, महीपाल चरित्र बाला०, क्षेत्रसमास बाला०, उत्तम कुमार चरित्र बाला०, स्वप्रविचार स्तबक, सूक्तावली स्तबक, अक्षयतृतीया कथा बाला०, शांतिनाथ चरित्र बाला०, वृद्धचारणक्य नीति पर बाला०, चतुर्मासी व्याख्यान, होली कथा, उपदेश प्रासाद टव्वा सहित, सप्तस्मरण बाला०, विवेक विलास बाला०, श्रीपाल रास बाला०, उपदेश रसाल जीवाभिगम सूत्र बाला०, लघु संग्रहणी बाला०, लघु चाणक्य नीति स्तबक, प्रश्नोत्तर ग्रंथ, भाव षट् भिंशिका पर बाला०, बंकचूलिया बाला०, आत्मशिक्षा बाला०, सत्तरीसय स्थानक, मुनिपति चरित्र, नारचंद्र स्तवक, शांतिनाथ चरित्र बाला० भक्तामर मंत्र कल्प इत्यादि सैकड़ों बाला व बोध, टव्वा, स्तबक और टीका आदि गद्य ग्रंथ इस शती में जैन पंडितों ने प्रस्तुत किए। कुछ मूल ग्रंथों की कई विद्वानों ने टीकायें, टव्वा, स्तबक आदि लिखे इसलिए ग्रंथों के नाम एकाधिक बार आ गये हैं। कुछ ग्रंथों पर तो बीसों टव्वा, बाला व बोध लिखे गये जैसे कल्पसूत्र, सम्यकत्व, नवतत्व, ज्ञातासत्र, दंडक आदि प्रसिद्ध आगम ग्रंथों पर अनेक लोगों ने टीकायें की। दःख इस बात का है कि इनके लेखकों का नाम और इतिवृत्त ज्ञात नहीं हैं और गद्य के नमूने भी सुगमता से सुलभ नहीं है; इसलिए इतिहास लेखन के लिए अपेक्षित सामग्री के अभाव में केवल सूची संग्रह से संतोष करना पड़ रहा है। फिर भी इस विस्तृत सूची से यह बात तो पृष्ट और प्रमाणित होती ही है कि अन्य आ० भा० भाषाओं की तरह इस भाषा शैली में भी जैन विद्वानों ने प्रचुर गद्य की रचना की। इस शती में केवल प्रचुर परिमाण में रचना नहीं हुई बल्कि उनकी भाषा शैली भी उत्तरोत्तर परिष्कृत प्रसाद गुण संपन्न और मुहावरेदार होती गई। कुछ उदाहरणों द्वारा अपनी बात प्रमाणित करना आवश्यक समझता हूँ। ज्ञानानंद कृत श्रावकाचार (सं० १८५८) की भाषा का नमूना पहले प्रस्तुत है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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