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रुक्मिणि हरण - हरदास राजा विक्रमादित्य और वेताल पचीसी, सिंहासन वत्तीसी जैसी कथाओं को अनेक कवियों ने पुरानी हिन्दी में पद्यवद्ध किया।
विष्णु
रचना- 'चंदराजा ना दूहा'- यह पुरानी हिन्दी में विविध छंदों में पद्यपद्ध रचना है। यह १०६ कड़ी की रचना सं० १८२८ फाल्गुन कृष्ण १३ भौमवार को भुज में पूर्ण हुई। इसका प्रारंभ इस प्रकार है। आदि- अलख निरंजन ओक तुं, देत सुबचन दात;
सरसति को समरन करूं, रचौं चंद की बात। जैन धर्म के ग्रंथ में, कथा सुचौपइ जात,
'विसन' सोइ भाषा करी, चंदराय की बात।
इससे व्यक्त होता है कि प्रसिद्ध जैन कथा 'चंद चौपई' पर आधारित है। इसकी अंतिम पंक्तियाँ निम्नाङ्कित हैं
कच्छ देस शुभ नाम भुज, तपेगो होउज्युं राय;
तिहि ठोर यह बात को, भाषा करी बनाय। कवि ने अपना परिचय इन पंक्तियों में दिया है
वल्लासुत जो विष्ण जी लोहरवंसी लेख,
चंदराय की बात यह, प्रगट करी तिहि पेख। रचनाकाल- संवत अठारे विस अठ, फागुन तेरस साम,
भोमवार को प्रगट भई, चंद बात तिहि नाम। चंदराय की बारता, विष्णु रची सो भाव,
आली सुत तकि अछर गावत मेरी ओ साख।१८
सुदामो (विप्र)- रचना 'राधा जी नो सलोखो' (सं० १८२९ के आसपास) अपर नाम 'कृष्ण राधा नो रास' (२४ कड़ी); का आदि
आज महापर्व मली करी हरि जी रमसुं रे होली;
तेव तेवडी जांता मली, गोरी नी टोली। अंत- हरि गोवाल हुंकारिया, ग्वाले गोपी ने घेरी,
राधाइ हलघर मागीया, रास रमसुं फेरी।
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