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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास वर्द्धमान ससि सम वदन, चंचल भव्य चकोर, निरखित आनंदित नयन, जसु प्रणमुं कर जोर। हंस गती हंसवाहणी, हंस समुज्वल देह,
कवीयण मन उज्वलकरण, सदा वसो ससनेह। यह रचना ज्ञाताध्ययन से आशय लेकर लिखी गई है, यथा
ज्ञाताध्ययन नो आसय आणी, कीधी कविता जाण जी;
सूत्रवचन जग में परमाणि, ते निश्चे गुणखाणी जी। आप उवजेस गच्छ की सुंदर शाखा के विद्वान् थे, यथा
उवअसगच्छ-प्रभाकर छाजै अभिनव तेज विराजै जी। श्री सिद्धसूर सूरीसने राजै, कीरति दिनप्रति गाजै जी। सुंदर साखा जगहितकारी, रतिसुंदर गुणधारी जी, तस पदपंकज आज्ञाकारी मान्यसुंदर व्रतधारी जी। तासु कृपा कर ज्ञान उजाला, सौजन्य सुंदर सबिशाला जी,
चरित रच्यो तिण सुंदर ढाला सुणता मंगल मालाजी। रचनास्थान- नगर पीपाड रह्या चौमासे, श्री संघ अधिक हुलासै जी,
साभलता सुख संपति थासै, दिन प्रति लील विलासै जी।४२१ सौभाग्यसागर
आप तपा० महिमासागर के शिष्य थे। इनकी रचना 'जंबूकुमार चौढालियु' सं० १८७३ पाटण में पूर्ण हुई। यह प्रकाशित है।४२२ श्री मो०६० देसाई ने इसका उल्लेख किया है किन्तु कोई उद्धरण आदि नहीं दिया है। हरकूषाई
इनकी दो रचनाओं का उल्लेख श्री अच० नाहटा ने किया है-'महासती श्री अमरु जी का चरित्र' (सं० १८२०, किसनगढ़); दूसरी रचना ऐतिहासिक 'चतरु जी का संञ्झाय' है।४२३ दूसरी रचना ऐतिहासिक काव्य संग्रह के पृ० २१४-१५ पर नाहटा जी ने प्रकाशित किया है। हरखचंद (श्रावक)
रचना-चौबीसी (रागबद्ध सं० १८४३ से पूर्व); इसका आदि निम्नांकित है
उठतत प्रभात नाम, जिनजी को गाइये
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