Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Author(s): Shitikanth Mishr
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 275
________________ २६४ अध्यात्म चौपाई (१५१ कड़ी) का आदि अंत इस रचना का कवि अज्ञात है, परंतु प्रति के आधार पर इसे श्री देसाई ने १९वीं शती की रचना माना है। अंत हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास नवपद पूजा यह रचना गुजराती प्रधान मरुगुर्जर में रचित है। यह गद्य-पद्य युक्त रचना है। आदि- अथ नवपद की पूजा लिखयेत; प्रथम अरिहंत पद की स्तुति इष्टदेव प्रणमी करी, आतम द्रव्य अबोध; अनंत चतुष्टय रूप में, गुणे पज्जवनो थोभ । कमंडल मेल्या पछी, व्यवहार सत्ता जाणि, शुद्ध जप विचारतां, जे जिम होई निर्वाण | को कहने आधीनें नही, जे जम ग्रहे प्रस्ताय; अहे भावे बर्त्ते सदा, सधले मंगलीकथाय । २ अंत Jain Education International ऊप्पएण-सन्नाण महोमहाणं सपाडिहेश खडसडुआणं, सद्देसणाणंदिय- सज्जणाणं, नमो नमो ओम् सपाजिणाणं । जैसा उदाहरणों से स्पष्ट है कि इसकी पद्यभाषा पर गुजराती प्राकृत का प्रबल प्रभाव है किन्तु गद्य की भाषा अपेक्षाकृत सुबोध मरुगुर्जर है। इसीलिए इसे मरुगुर्जर (पुरानी हिन्दी) की रचना माना गया है। इसके कर्त्ता का भी नाम-पता अज्ञात है । शालिभद्र संभाय हरख धरी अपच्छरावृंद आवे स्नात्र करीने, इम आसा सभावे जीहा लगे गिर जंबू दीपो हम तणां नाथ जीव जीवो। * (११ कड़ी की लघु कृति है ।) इसकी प्रारंभिक पंक्तियाँ निम्नवत् हैं महिमंडल मांहि वीचरता रे, राजगृहि उद्यान, सालिभद्र स्यूं परिवर्या रे, समोसर्या जिन वर्धमान । सालिभद्र गाइइ करता ऋषि गुणग्यान रे, आनंद पाइइ । अह सुनी अणसण आदरी रे, अणसरी सूर पदवास। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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