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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पंडित वीर विजय पद्मावती, वांछित दाय सवायो रे।
यह विविध पूजा संग्रह, विधि विधान साथे स्नात्रादि पूजा संग्रह और अन्यत्र से प्रकाशित है।
(सिद्धाचल अथवा शत्रुजय)अंजन शलाका स्तवन अथवा मोतीशा नां ढालिया (७ ढाल, सं० १८९३) यह सूर्यपुर रास माला में प्रकाशित है।
धम्मिल कुमार रास (७२ ढाल, २४८८ कड़ी, सं० १८९६ श्रावण शुक्ल ३, राजनगर) का प्रारंभ इस प्रकार हुआ है- '
सकल शास्त्र महोदधि पारंग, शम रसैक सुधारस सागरं, सुखकरं शुभ वैजय नायकं, मनसिमंत्र मिमं प्रज्याभ्यहम्। कमल भूतनयामभिनम्यतां, कवि जनेष्ट मनोरथदायिनी
रसिक प्राकृत बंध कथामिमा, विरचामि व्रतोदय हेतवे।
यह कथा प्रसिद्ध ग्रंथ वसुदेव हिण्डी के आधार पर रचित है। रचनाकाल इस प्रकार है
संवत अठासे छन्नु वरसें, श्रावण उजली त्रीसे रे,
आ भव मां पचखाण तणुं फल, वरणवी ज्यो मन रीझे रे।
इस रचना को भीमसी माणेक नै प्रकाशित की है। हित सिखामण स्वाध्याय सं० १८९८ की रचना है। इसमें कुछ उपदेश है। महावीर ना २७ भव - स्तवन (सं० १९०१ श्रावण पूर्णिमा)
उगणिस अंके वरस छे के पूर्णिमा श्रावण वरो,
में थुण्यो लायक विश्व नायक वर्द्धमान जिणेसरो।
यह स्तवन देव वंदन माला तथा नव स्मरण में प्रकाशित हैं। चंद्रशेखर रास (५७ ढाल सं० १९०२ विजय दशमी, राजनगर)। ये १९ वीं और बीसवी शती में रचनारत रहे। इनकी १९ वीं शती की कृतियों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। बीसवीं शती की रचनाओं का नामोल्लेख किया जा रहा है। उनका विवरण २० वीं शती में यथा स्थान दिया जा सकेगा। इनकी प्राय: सभी रचनाएं प्रकाशित हैं। २० वीं शती में लिखित रचनायें
(१) हठीसिंह नी अंजन शलाका ढालिया अथवा हठीसिंह ना संघ, वर्णन (सं० १९०३) यह सूर्यपुर रासमाला में प्रकाशित है।
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