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सूरत - सेवाराम (शाह)
२३३ इन पंक्तियों से स्पष्ट होता है कि कवि जैन धर्म का अनुयायी है किन्तु उद्धरणों से कही भी गुरुपरंपरा या कवि के जीवन वृत्त आदि का संकेत नहीं मिलता। रचना का . विवरण बताते हुए अंतिम दोहे में कवि ने लिखा है कि इस रचना मे चालीस दोहे और ३६ छंद है, यथा
वारखड़ी हित सुं कही नहिं गुनयन की रीस,
दोहा तो चालीस हैं, छंद कहे छत्तीस।४१५
वाराखड़ी अक्षरक्रम से लिखी जाने वाली एक विशेष काव्य विधा है। सेवाराम (शाह)
आपका ‘धमोपदेश संग्रह' प्रसिद्ध है। वह रचना सं० १८५८ में की गई थी किन्तु कुछ भाग सं० १८६१ में लिखा गया। यह ग्रंथ जयपुर स्थित लश्करी देहरा नामक नेमिनाथ के मंदिर में लिखा गया था। उस समय जयपुर में प्रतापसिंह का शासन था। ग्रंथ की अंतिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं
लघुसुत सेवाराम यह ग्रंथ रच्यो भविसार,
पढ़े सुने तिनु पुखि के, उपजत पुन्य अपार।१६
आपकी एक अन्य रचना 'चौबीस तीर्थकर पूजा' है। यह १८५४ मगसिर वदी ६ को पूर्ण हुई थी। इससे पता चलता है कि ये साह गोत्रीय श्रावक वखतराम के छोटे पुत्र थे। बख्तराम स्वयं अच्छे विद्वान् थे। उन्होंने 'मिथ्यात खंडन' और बुधविलास नामक ग्रंथों की रचना की थी। इनके बड़े भाई जीवनराम थे। उन्होंने भक्ति प्रधान अनेक मार्मिक पद जग जीवन उपनाम से लिखे हैं। संबंधित पंक्तियाँ उद्धृत की जा रही हैं
तिन प्रभु को सेवग जु तो वखतराम इह नाम। साह गोत्र श्रावक सुधी गुण मंडित कवि राम। तिन मिथ्यात खंडन रच्यो लखि जिनमत के ग्रंथ, बुधविलास दूजो रच्यो मुक्तिपुरी के पंथ। तिनको लघु सुत जानियो सेवाराम सुनाम, लखि पूजन के ग्रंथ बहु रच्यो ग्रंथ अभिराम। ज्येष्ठ भ्रात मेरो कवि जीवन राम सुजानि, प्रभु की स्तुति के पद रचे महा भक्ति वर आनि। तामै नाम धरयो जु है जगजीवन गुण खानि, तिनकी पाय सहाय को कियो ग्रंथ यह जानि।
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