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विष्णु - वृंदावन है और लिखा है कि विजयधर्म सूरि के राज्य में यह रचना हुई, यथा
तास पटि आचारिज चिरंजीवी, विजयधर्म सूरि तस राज्ये,
संघ आग्रहे मि रचना कीधी, मधुमती संघ ने साहज्ये रे।
मधुमती संभवत: आधुनिक महुवा नामक स्थान है। इससे पूर्व लेखक ने विजय क्षमा, विजय दया और विजय धर्म सूरि का सादर वंदन किया है। अर्थात् ये तपागच्छीय विजय क्षमा > विजयदया > विजयधर्म सूरि के शिष्य रहे होंगे। रचनाकाल इन पंक्तियों
में है
संवत अठार नंद मिति वरसे, वैशाष सुदि छठि दिवसें रे,
कुजवार से पूरण कीधो, चरित्र थी रास उल्लासि रे। इसकी प्रारंभिक पंक्तियाँ निम्नांकित हैं
पंचनाम परगट कर्या, आदी सर अरिहंत,
युगला धर्म निवारीओ, ते प्रणमुं भगवंत।
मंगला चरण में नेमि, पार्श्व और महावीर की वंदना की गई है। कवि ने तत्पश्चात् हंसवाहिनी सरस्वती से प्रार्थना किया है कि वे कवि को वाणी की ऐसी सामर्थ्य दें ताकि वह शील धर्म पर आधारित चित्रसेन पद्मावती' की कथा का सुंदर-सरस वर्णन कर सके। संबंधित पंक्तियाँ देखिए
शीलोपरि अधिकार कहूं, सुणज्यो देई कान, श्रोताजन सुणतां थका, उपजस्ये बहु तान। चित्रसेन राजा तणी, पद्मावति घरि नारि,
तास चरित सुपरिं कहूं, शील तणे अधिकार। इसमें शील का बड़ा गुणमान किया गया है, यथा
शीले देव देवी बसि थाईं-शीले नवभव भांजे। इत्यादि३८० वृंदावन
कामता प्रसाद जैन और नाथूराम प्रेमी ने वृंदावन को इस शताब्दि का श्रेष्ठ जैन कवि घोषित किया है। इनका जन्म शाहाबाद जिलान्तर्गत बारा नामक ग्राम में सं० १८४८ को हुआ था। इनके पिता धर्मचंद गोयल गोत्रीय अग्रवाल थे। १२ वर्ष की अवस्था में जब कवि अपने पिता के साथ काशी आये थे तब काशीनाथ आदि कई विद्वज्जनों की सत्संगति का सुअवसर इन्हें मिला। वे काशीवास के समय बाबर शहीद की गली
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