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माल
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षट् ढाले करी गाइयोजी, रही चौमासो अंजार, सुगुण नर भाव बड़ो संसार।
यह कृति जैन संञ्झास संग्रह (साराभाई नवाब) में प्रकाशित है और जैन संञ्झाय माला (बालाभाई) भाग १ में भी प्रकाशित है।
षट् बांधव नो रास (२१ ढाल सं० १८५७ कार्तिक, मांडवी) आदि- “तीर्थंकर बावीसमा जादव कुल मांहि चंद, - बाल ब्रह्मचारी सदा नमू, प्रणमुं नेम जिणंद। अंत- सवा अकवीस ढाले करी गायो, प्रबंध घणो अति मीठो रे,
अधिको ओछो में नथी भाष्यों, जो काईं शास्त्र मां दीठो रे। संवत् अठार सतावना वर्षे प्रकास्यों काति चोमासे सुखकार रे, मांडवी विंदर अति घणु सुंदर लोकोगछ श्रीकार रे। गच्छपति खूबचंद जी विराजे, तस शासन सख दाया रे। पुज्य नाथा जी तणा सुपसाये, माल मुनि गुण गाया रे।
यह प्रबंध गज सुकुमाल, बलभद्र और श्री कृष्ण आदि छह भाइयों की कथा पर आधारित है।
अंतरंग करणी अथवा जीव अने करणी नो संवाद' का आदि
गावहिं केइ प्रेम स्यु हो, बिंदुली मुरली तान, करनी हउं तऊ गायस्यु हो, तम्ह सुणियहु चतुर सुजाण। X X X X X X जीव कहइ हुं पुरुष हुं हो, पुरुष बड़ा संसारी,
करनी तेरउ नाम हुई हो, क्या तूं बपुरी नारी। अंत- जीव पुरुष है उद्यमी हो, करणी हुइ तसु नारि,
भाग्य मिलइ जउ साथि तऊ हो, काज सरइ संसारि। जे जग शुभ करणी करइ, सुहड वचन प्रतिपाल,
सीमंधर साखी सदा हो, प्रणमइ तिन्ह मुनि माल।२९८
जैन गुर्जर कवियों के प्रथम संस्करण में इन्ही माल मुनि को अंजना सुंदरी चौपाई का भी कर्ता बताया गया था किन्तु नवीन संस्करण के संपादक का स्पष्ट मत है कि उसके कर्ता अन्य माल मुनि थे। प्रस्तुत 'संवाद' में भी गुरु परंपरा न होने से यह निश्चय
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