________________
१८२
हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
शिष्य थे आपकी रचना उत्तमकुमाररास (२७ ढाल सं० १८५२ आसो सुदी २ बुधवार,
खेडा) का परिचय प्रस्तुत
है।
आदि
इसकी बारहवी कड़ी तक सरस्वती वंदना के पश्चात् पंच तीर्थ आदि देव, शांति, नेमनाथ, पार्श्व और महावीर की वंदना है। इसमें उत्तमकुमार की कथा के मध्यम से सुपात्र को दान देने का महत्त्व दर्शाया गया है- यथा
सरस्वती भगवती सारदा, समरु सदगुरु नाम, चरण जुगल नमुं नाम थी, भाव धरी अभीराम। गुरु तारणा गुरु देवता, गुरु दीपक सम ज्योत, माता पीता बन्धव गुरु, ग्यान रवी उद्योत ।
अंत
राजकरण
इसमें पहले बताई गई गुरु परंपरा का उल्लेख कवि ने किया है। रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है
-
सुपात्र दानना जोग थी, पाम्यो सुख भरपूर, पुन्य दान उत्तम कथा, सांभलता दुख दूर। X X X X X X संबंध उत्तमकुमार नो, सांभलयो नरनार, अक मने अकासने, कहूं तेहनो अधिकार ।
संवत अठार स्यों बावन आसो सुद बीजा ने वार बुधे रे, रास रच्यो खेटकपुर मांहे, सांभलज्यों मन सुद्धे रे। वेत्रवती कांठे दीदारू, रसूलपुरा मा गवाया रे, रीषभ शांति भीड़ भंजन सोहने, त्यों में कलश चढ़ाया रे,
ढाल सत्तावीसमी सहुश्रोता सांभली ने सद्वहीइं रे, राजरतन कहे पूरणा पदवी जिनवर वचने लहीअं रे । ३२१
Jain Education International
आप की एक रचना, 'श्री जिनमहेन्द्र सूरि भास' ऐ० जैन में छपी है। इस भास में बताया गया है कि आपका जन्म शाह रुधनाथ की पत्नी सुंदरी की कुक्षि से हुआ था। आप जिनहर्षसूरि के पट्टधर थे। इस गीत में कवि ने महेन्द्रसूरि के मरुदेश पधारने पर जो हर्ष हुआ उसका वर्णन किया है। उदयपुर नरेश द्वारा आपको पधारने के लिए विनती भेजने और मेड़ता, बीकानेर, जैसलमेर के जैन संघों के विज्ञप्तियों को भेजने का वर्णन किया गया है। जिन महेन्द्र के पट्टधर जिनभक्त सूरि और उनके शिष्य जिनचन्द्र
सूरि की गादी जयपुर में है। इसका प्रारंभ इन पंक्तियों से हुआ है
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org