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रुप - ब्रह्म रुपचंद मकसूदाबाद में '२८ लब्धि पूजा' की रचना की।३३५ रुपचंद
ये गुजराती लोकागच्छ के विद्वान् संत थे। जैन गुर्जर कवियों के प्रथम संस्करण में देसाई ने २८ लब्धिपूजा के कर्ता रूप और प्रस्तुत रूपचंद को एक ही व्यक्ति बताया था किन्तु नवीन संस्करण के संपादक जयंत कोठारी का कथन है कि ये दोनों भिन्नभिन्न लेखक हैं। . एक अन्य ‘रुप' नामक लेखक का उल्लेख देसाई ने किया है किन्तु उनके गच्छ, संप्रदाय का उल्लेख नहीं किया है। उनकी रचना। गौडी पार्श्वनाथ छंद (१२ कड़ी) का आदि और अंत अवश्य दे दिया है परंतु उससे इनके संबंध में कोई निश्चित जानकारी नहीं मिलती। गोड़ी पार्श्वनाथ छंद की प्रारंभिक पंक्ति इस प्रकार है
त्रिभुवन भक्तिततसार ज्यांउरधार जास जग उद्धरण अंत अकल घण कीरति महिमा घणी,
सेवक रुप आसै सुपरि धरी जैवंत गोड़ी धणी।३३६ ब्रह्म रुपचंद
___ आप पार्श्वनाथ गच्छ के साधु अनूपचंद के शिष्य थे। इनकी रचना है केवल सत्तावनी (हिन्दी, सं १८०१ माघ शुक्ल ५, रविवार), इसका आदि देखेंसवैया- ओंकार पूरण ब्रह्म पदारथ सकल पदार्थ के सिरस्वामी;
व्यापक विश्वप्रकाश सुतंतर ज्योति सर्वघट अन्तरजामी। सिद्ध अही गुरु गोविन्द हे अरु शिष्य अही पर छांही अकामी।
आपु अकर्ता पुन्यता भोगता ताहि विलोकन में केवल नामि। रचनाकाल- संवत सैजु अष्टादस जानो ऊपर अकोत्तर वरसै बची,
मास सुउज्जवल माघ सुपांसें ता दिन बसंत रितु शुभ मची। x x x x x x काशी देस नयरी जात्रा जु आये वृषभ जिन केरी, भाव सु भेट्यो सिद्धाचल तीरथ कर्म कठोर मिटी भवफेरी। जे जग पंडित भावारथ विचार पढ़े तिनकुं बंदन मेरी,
पूरणा कुपा हुवे सतगुरु की केवल संपत्ति आवहिं नेरी। लघु ब्रह्म बावनी (हिन्दी)
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