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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास आदि- चिदानंद परमातमा, सुद्ध स्वरुप सुज्ञान;
नमो विश्वनायक सदा, सिद्ध शुद्ध भगवान।
इस महत्त्वपूर्ण कृति के अतिरिक्त आपने अनेक स्तवन और संञ्झाय आदि लिखे हैं। अजितनाथ जन्माभिषेक अथवा कलश आनंद काव्य महौदधि भाग ६ में प्रकाशित
है। 'महावीर सत्तावीस स्तव', तरंगा स्तव, अरणिक मुनि संञ्झाय, आत्म बोध संञ्झाय, - नेमराजुल संञ्झाय आदि सभी प्रकाशित रचनायें हैं।
इनका एक गद्य ग्रंथ भी प्राप्त है-सम्यकत्व संभव बाला० (सुलसा चरित्र) यह भी संवत् १९०० में रचित है। इसके मूलक" जय तिलक सूरि ने अपना ग्रंथ सुलसा चरित्र संस्कृत में लिखा था। आपने उसका भाषा में बालावबोध लिखकर उसे जन सामान्य के लिए सुलभ किया।३४० लक्ष्मीदास
आप सांगानेर के निवासी थे और भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति के शिष्य थे। आपने सांगानेर के राजा जयसिंह के पुत्र विष्णुसिंह के राज्यकाल में 'यशोधर चरित्र' की रचना की। आचार्य सकल कीर्ति और कवि पद्मनाभ कायस्थ की रचनाओं (संस्कृत) का सार ग्रहण करके प्रस्तुत कवि ने भाषा में यह रचना की। काव्यत्व की दृष्टि से रचना औसत दर्जे की है। कविता के नमूने के तौर पर कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैंकुंदलिता देखि तौ मनोज प्रभूत महा, सब जग वासी जीव जे रंक करि राखे है। जाके बस भई भूपनारी रति जेम कांति, कुबेर प्रमान संग भोग अभिलाषै है। बोली सुन बैन तबै दूसरी स्वभाव सेती, काम बान ही काम ऐसे वाक्य भाखै है। नैन नीर नाहिं होइ तो कहा करें सु जोइ, मति पाय जीव नाना दुख चाखै है।३४१
इसकी खंडित प्रति प्राप्त होने के कारण रचनाकाल संबंधी उद्धरण देना संभव नहीं है परंतु यह लेखक उन्नीसवीं शती का ही है।
आपकी एक अन्य रचना 'हरिवंश पुराण' (सं० १८२६) का उल्लेख उत्तमचंद कोठारी ने अपनी हस्तलिखित सूची में किया है।३४२ लखमीविजय
संभवत: तपागच्छीय पद्मविजय इनके गुरु थे। इनकी रचना "दूढिया उत्पत्ति' (सं० १८५१ के पश्चात) शुद्ध सांप्रदायिक रचना है। इसका प्रारंभ इन पंक्तियों से हुआ है--
समरु साची सारदा, ढुंढकना कहुं ढाल;
उत्पत्ति लिखुं आदि थी रमणिक बात रसाल। Jain Education International X X For Xivate & Xsonal Xe OnlyX
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