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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास चौबीसी
यह चौबीसी-बीशी संग्रह में प्रकाशित है। ज्ञानपंचमी (अथवा सौभाग्य पंचमी) देव वंदन नामक रचना देव वंदन माला और चैत्य आदि संञ्झाय भाग ३ तथा जिनेन्द्र भक्ति प्रकाश और अन्यत्र से प्रकाशित है। वहाँ से उद्धरण सुविधापूर्वक देखे जा सकते है। इन विस्तृत रचनाओं के अलावा आपने रोहिणी संञ्झाय (प्रकाशित); भगवती सं० ज्ञानपंचमी संञ्झाय आदि कई छोटी रचनायें की हैं जो प्राय: प्रकाशित है। इससे पता चलता है कि ये अच्छे रचनाकार तथा प्रभावशाली आचार्य थे।३६७ विद्यानंदि
आपने सं० १८१७ माघ शुक्ल पंचमी के दिन अपनी रचना 'नेमिनाथ फागु' को पूर्ण किया। इसमें ७६६ पद्य हैं और हिन्दी फागु परंपरा का यह प्राचीन फागु है। इसके दो प्रतियों का विवरण कस्तूरचंद कासलीवाल ने दिया है।३६८ उत्तमचंद कोठारी ने भी अपनी हस्तलिखित सूची के पृष्ठ चौवालिस पर इसका उल्लेख किया है किन्तु दोनों विद्वानों ने इस फागु का विवरण उद्धरण नहीं दिया है। विद्याहेम
आपने सं० १८३० भाद्र कृष्ण द्वितीया को अपनी रचना 'विवाह पडल अर्थ' को पूर्ण किया। इसका भी विशेष विवरण उपलब्ध नहीं है।३६९ विनकर सागर
___ तपागच्छीय प्रधानसागर इनके गुरु थे। इन्होंने सं० १८५९ में चौबीसी' की रचना राणकपुर में की। '२४ जिन चरित्र' नामक एक बड़ा ग्रंथ इन्होंने १८७९ सं० में गोढ़वाढ़ में पूर्ण किया। अगरचंद नाहटा ने इनकी तीसरी रचना 'मानतुंगी स्तवन' का भी उल्लेख किया है परंतु उन्होंने इन रचनाओं का अन्य विवरण या उद्धरण नहीं दिया है।३७० विनयचंद | -
आप श्याम ऋषि-ताराचंद, अनोपचंद के शिष्य थे। इनकी रचनाओं का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है
मयणरेहा चौपाई (छ: ढाल, सं० १८७० अधिक माघ १३, जयपुर) आदि- आदि प्रथम धोरी प्रथम राजेश्वर जिनराय, नमि नाभेय अमेय गुण, कनक आभ सम काय।
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