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चौबीसी - विनयचंद ||
रचनाकाल— संवत अठारे सय सित्तर अधिक माघ तेरसी दिने, जयपुरे जिनवरने प्रसादे, सुणो भवियण इकमने ।
कलश
सिद्धांतसार विचार सागर लोक में कीरति घणी, संवेगरंग विशेष अंगे साधु शाम ऋषिगणी । ताराचंद गुणधर अनोपचंद सीस अ,
तस चरण सेवक विनय छहुअ करी ढाल जगीस ओ । ३७१
अंत—
है । ३७२
आपकी दूसरी रचना ‘चंद्रन वाला चौढालियु' (सं० १८८५ ज्येष्ठ शुक्ल ७) इसका उद्धरण उपलब्ध नहीं है। आपकी तीसरी रचना सं० १८७२ से कुछ पूर्व 'सुभद्रा चौ०' नाम से लिखी गई। इसका प्रारंभ इस प्रकार है
शिवदायक लायक सदा, कंचन वरण शरीर । शासन नायक सिवगति, नमो-नमो महावीर |
गुणगणलंकृत हरण दुरमति श्री आचार्य साम, तास चरण सेवक ताराचंद जी, करी अति अभिराम । अनोपचंद जी तास शिष्य आदरी आणंद धरी, तस चरण सेवक कवि विनयचंदे, ढाल पांचु से करी ।
२०९
श्री देसाई ने जै० गु०क० के प्रथम संस्करण में विनय नाम दिया था, नवीन संस्करण में विनय और विनयचंद को एक कर दिया गया है।
विनयचंद के संबंध में अगरचंद नाहटा जी का कथन है कि ये अनोपचंद के शिष्य थे। सं० १८७०-८५ के बीच आपने करीब १५ हजार पद्य संख्या परिमिति रचनायें की, उनमें सबसे विस्तृत रचना बहादुर पुर अलवर में रचित महिपाल चौ० १८८७ है। अन्य रचनाओं में उन्होंने मानवती मानतुंग रास १८७० जयपुर, मयणरेहा छढालियो १८७० जयपुर, सुभद्रा पंचढालियों १८७०, नंदराय वैरोचन चौ० १८७९ जयपुर; थावच्या चौढालिया १८८५, भंडुक चौ० १८८५ शाहजहानाबाद चंद्रन बाला चौढालिया १८८५, अंजना चौ० ११ ढाल, रोहिणी चौ० शाहजहानाबाद, जयंती चौढालिया; देवानंद चौढालिया, बीकानेर; होलिका चौढालिया, नंदीषेण चौढालिया, पद्मिनी पंचढालिया, दोहारी ढाल, पुष्पवती ७ ढाल (शीलोपदेश माला पर आधारित); आषाढ़ भूति चौढालिया, सम्यकत्त्व कौमुदी चौ० १८८५ और आलंदी ५२ ढाल की सूची दी है । ३७३ महिपाल चौ० सबसे विस्तृत है इसमें १४९ ढाल है।
विनयचंद ||
आप स्थानकवासी श्रावक थे। हमीर मुनि इनके गुरु थे। इन्होंने सं० १९०६
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