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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अंत- गर्भावास नावें ते नली, इम भाषे ते सुद्ध केवली।
अठार तिलोतर भाद्रवा सार, वद इग्यारस ने दिव्यवार। 'रोहिणी तप पर संञ्झाय' (३ ढाल सं० १८२४ कार्तिक कृष्ण ५, पालणपुर) आदि- श्री शंखेस्वर जिनपति, वामा मात मल्हार,
परतापूरण परगडो, सिव रमणी दातार।
इस संझाय में रोहिणी के तप और निर्वाण प्राप्ति की कथा है। राजा श्रेणिक ने महावीर स्वामी से एक बार पूछा
देसना सूणी राजा कहे, कहो मूझ विचार,
किम रोहिणीई तप कयों, कहो मुझ जगदाधार। रचनाकाल- अठार चौबीसा हो बरसे, पालणपुर चोमास,
काति बदी पांचमि दिने श्री नवपल्लव पास।२६१
आपकी एक गद्य रचना चित्रसेन पद्मवती चरित्र बाला०' अथवा स्तवक है। उन्होंने यह बालावबोध अपने शिष्य पुण्यविजय के लिए लिखा था। मो०द० देसाई ने जै० गु० कवियों के प्रथम संस्करण में इसे बालवबोध के बजाय रास बताया था, जिसका सुधार नवीन संस्करण में कर दिया गया है। भगुदास
आपकी एक रचना 'चौबीसी'२६२ (सं० १८३९, जयपुर) का पता चल पाया है परन्तु अन्य विवरण और उदाहरण आदि नहीं मिल सका है। भाणविजय
आप तपागच्छ के प्रसिद्ध आचार्य विजयप्रभसूरि के प्रशिष्य एवं प्रेम विजय के शिष्य थे। आपकी रचना विक्रमादित्य पंचदण्ड चरित्र अथवा रास (४ खण्ड ५७९७ कड़ी, सं० १८३० ज्येष्ठ शुक्ल १०, रविवार औरंगाबाद) लोकप्रसिद्ध विक्रमादित्य की कथा पर आधारित है। इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है
अमल कमल सम नयन जुग, सुरपति सेवित पाय। पास जिणंद दिणंद सम, प्रणमतां आनंद थाय। X X X X X कवि अनेक छे भूतले, ओक-अक थी घणा दक्ष, ते आगलि मूझ चातुरी, हास्य ठाम परतक्षा
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