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मनराखन लाल - मकूलचंद अंत- वांछा उत्यम मोह अमीचंद रायचंद सुत प्रकासे जी,
भोजक भावधरी गुण गांतो, बड़ नगर मां वास जी। शत्रुजा मातम मां सुणीज्यो वली हरिवंश पुराणे जी। गुणतां भणतां सुणतां भावै तस घर सयल निधान जी। शुद्ध-बुद्ध सूभ मत्थ सम आवे, अंबा मात पसाय जी। रीषभदेव जिन जी मंगली के, मयाराम गुण गाया जी।२८८
इनकी एक अन्य रचना 'समवशरण मंगल' का उल्लेख डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल ने किया है। इसका रचनाकाल उन्होंने सं० १८२१ बताया है। किन्तु अन्य विवरण एवं उद्धरण आदि कुछ नहीं दिया है।२८९ मलूकचंद
(श्रावक) आप की रचना का नाम है “वैद्यहुलास"। यह वैद्यक ग्रंथ है; इसमें ५१८ कड़ी है। समय निश्चित ज्ञात नहीं हो सका किन्तु १९वीं शदी के मध्य की रचना बताई गई है। आदि- नक्षत्र देव चित्त धरनधर, रिद्धि सिद्धि दातार,
विमल बुद्धि देवै सदा, कुमतिविनासन हार। सीस चर्ण लौं औषध कहैं, सेवक रोगी बहुसुख लहै। लुकमान हकीम जु कही तिव्व, तिसतै औषध कहे जु सव्व।"
इससे प्रकट होता है कि यह लुकमान की तिब्विया पद्धति की औषधि संबंधी किताब है और मालूकचंद वैद्य कम हकीम ज्यादा थे। अंत- वैद्य हुलास सुनाम धरि, कीयो ग्रंथ अमीकंद;
श्रावक धर्म कुल जन्म को, नाम मलूक सुचंद।२९०
स्पष्ट है कि लेखक का नाम मलूकचंद है, किन्तु मात्रा छंद का ध्यान करके 'सु' शब्द जोड़ दिया है। जैन श्रावक और साधु वैद्यक, ज्योतिष का भी धर्म-दर्शन के अलावा अच्छा ज्ञान रखते और प्रचार करते थे। वे बहुश्रुत और पठित होते थे। महानंद
आप लोकागच्छीय रूप; जीव; जगजीवन; भीमसेन; मोटा के शिष्य थे। इन्होंने 'रूपसेन रास' (५ खण्ड ७५ या ८५ ढाल, २०१९ कड़ी, सं० १९०९ या १८०५,
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