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मतिलाभ या मयाचंद |
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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
मतिलाभ या मयाचंद प्रथम की रचना नवतत्त्वस्तवन' है जिसका रचनाकाल देसाई ने सं० १८१२ ज्येष्ठ शुक्ल ४ बताया है । २७९
मयाचंद ||
मयाचंद द्वितीय की रचना 'सवासो सीख संञ्झाय' है। इसका रचनाकाल अज्ञात है, उसका भी रचना स्थान मुलतान है।
मयाचंद III
आप लोकागच्छीय लीलाधर के शिष्य थे। इन्होंने 'गजसिंह राजा रास' की रचना १८१५ में की। लीलाधर लोका० कृष्णदास के शिष्य थे। गजसिंह राजा रास (२७ ढाल सं० १८१५ चैत्र शुक्ल ८ गुरुवार, नवानगर ) का आदि
शांति जिणंद सुख संपदाकारी पर कृपाल, वंदु हित करि हरष थी देज्ये वयण रसाल ।
सुखदा वरदा सारदा, वसि मुझ चित्त आगार, गजसिंध राय चरित्रनों भाखूं स्तोक विस्तार |
यथा योग्य नवरस तणो, संक्षेपे विस्तार, ते सुणज्यो श्रोता तुमें भविजन वचन प्रचार |
यह रचना निशीथ वृत्ति के आधार पर नवानगर में लिखी गई, यथा
श्री कृष्ण दास जी ऋषिवर मोटा विद्या तणां भंडार रे; लीलाधर जी तसु सिस कहिये खिमावंत अणगार रे । तस सेवक मुनि मयाचंद पभणे श्री गुरु ने पसाय रे;
मतिसागर
रचनाकाल—— संवत् अठार पनरोतरा बरसे, चैत्र मास सुभ ठाय रे; कृष्णाष्टमी गुरुवारे भाख्यो ओ अधिकार रे।
संघ तणे आग्रह करीने; रच्यो संबंध उदार रे । २८०
आपके गुरु का नाम वीरसुंदर था। आपने ज्योतिष संबंधी ग्रंथ लघुजातक पर बाला० की रचना सं० १८४६ से पूर्व कीं । मूल ग्रंथ अवंती के ब्राह्मण विद्वान् वराहमिहिर ने भोजराज की प्रेरणा से लिखी थी। इस बालावबोध के प्रारंभिक दो छंद संस्कृत में हैं
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