________________
भीखजी - मूधर चौ० आदि का उल्लेख देसाई जी ने किया है किन्तु रचनाओं का विवरण उदाहरण नहीं दिया है।२६८
राजस्थान का जैन साहित्य पृ०२३३ से इतनी सूचना विशेष रूप से मिलती है कि उक्त ग्रंथ के प्रकाशित होने तक भिक्षु ग्रंथ रत्नाकर का तीसरा खण्ड प्रकाशित नहीं हुआ था। भीमराज. खरतरगच्छीय जिनविजयसूरि के आप प्रशिष्य एवं गुलाबचंद के शिष्य थे। आपकी दो रचनाओं का पता चला है। प्रथम शत्रुजय उद्धार रास, (सं० १८१६ ज्येष्ठ शुक्ल सूरत) की इसी वर्ष की लिखित प्रति प्राप्त है। इसलिए यह रचनाकाल है या प्रति लेखन काल, यह निश्चयपूर्वक कहना कठिन है। आपकी दूसरी रचना है
'लोद्रवा स्तव' (सं० १८२४, गाथा ११) यह एक यात्रा वर्णन है। लोद्रवा तीर्थ की यह यात्रा कवि ने जिनयुक्त सूरि के साथ की थी। आपकी दोनों रचनायें तीर्थस्थलों से संबंधित हैं, किन्तु उनका विवरण उदाहरण न मिल पाने से उनके मूल्यांकन का प्रश्न ही नहीं उठता।२६९ मूधर
लोकागच्छीय जसराज आपके गुरु थे। आपने सं० १८१७ में गोडंल में चौमासा करते हुए 'अष्टकर्म तपावली स्वाध्याय' की रचना की। इसकी प्रारंभिक पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं
वीर वांदी रे पूछे गोयम गणहरु,
कम्म पयडि रे खेइरे किम थाये जग गुरु।
यह रचना गौतम गणधर और महावीर स्वामी के संवाद रूप में लिखी गई है। अंत- इम वीर वाणी सुणो प्राणी आंणी चित्त उदार ओ,
ओ तप तणी श्रेणी कही केणी गोडंल ग्राम मझारओ। (रचनाकाल) मुनि अल वसु चंद्र वर्षे हर्षे कृत चउमास ओ,
सुगुरुवर जसराज अनुचर शिष्य भूधर भास ।
आपकी दूसरी रचना 'चित्तचिंतवणी चौसठी (श्रावण सं० १८२०, गोंडल) आदि- प्रवचने पंचपद नो स्तवनानो अधिकार,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org