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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास १ को पूर्ण की। इसकी प्रति दिगंबर जैन मंदिर टोडा रायसिंह, टोंक में है। रचनाकाल- संमत अष्टादस धरौ ताऊपर इकबीस,
सावन सुदि परिवा सुं रविवासर धरा उगीस। वासव धरा उगीस स गामनाम सदु गौडो। जैनी जन बसवास औड़छै श्योपुर ठोड़ो। सांवथसिंध सु राज आज परजा सब थवतु,
जह निरभय करि रची देवपूजा भरि संवतु। कवि परिचय-गोलालारे जानियौ बंस खरो वाहीत,
सोनविपार सुबंदू तसु पुनि कासिल्ल सुगोत। पुनि कासिल्ल सुगोत सीक सीकहारा केरो। केलि गाम के बासनहार संतोषु संभारे,
कवि देवी सुपुत्र दुगुडै गोलारारे।२०५
उक्त अवतरणों से ज्ञात होता है कि कवि देवीदास कासलिवाल गोत्रीय गोलार वंश के जैनी थे और केलि ग्राम के निवासी थे। यह गॉव ओड़छा राज्य में था जहाँ उस समय राजा सामंतसिंह का राज्य था। उनके शासन में निर्भय होकर यह पूजा रची गई। प्राचीनकाल से हमारी शासन परम्परा धर्म निरपेक्ष रही है। राजा हिन्दू हो तो भी जैन, बौद्ध, हिन्दू, सिक्ख आदि सभी सम्प्रदायों के लोग निर्भय होकर अपना धर्म-कर्म, पूजापाठ करते थे। आज धर्म हीनता और धर्म निरपेक्षता को पर्यायवाची बताया जा रहा है
और सामान्य जनता को दिग्भ्रमित किया जा रहा है। देवीदास
दुगोदह केल गाँव जिला झॉसी के निवासी थे। इन्होंने ‘परमानंद विलास' सं० १८१२, प्रवचनसार, चिद्विलास वचनिका और चौबीसी आदि की रचना की।२०६ . देवीदास खंडेलवाल
ये वसवा के रहने वाले थे। इन्होंने भेलसा में 'सिद्धांत सार संग्रह वचनिका' की रचना सं० १८४४ में की।२०७ इसका अन्य उद्धरण- विवरण नहीं प्राप्त हो सका। दौलतराम कासलीवाल
जैन साहित्य में दौलतराम नाम के तीन कवि हुए हैं जिनमें एक आगरा निवासी पल्लीवास थे। दूसरे बूंदी के थे। तीसरे दौलतराम ढूढाड़ प्रदेश के वसवा ग्रामवासी श्री
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