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धर्मचन्द्र - II धर्मपाल
शहेर अहमदाबाद बुध दिनकर जोडि इणि परे भणे ।
इसमें कान, धर्मदास, मूलचंद और बाल ब्रह्मधर का उल्लेख हुआ है। जै० गु० क० के नवीन संस्करण के संपादक जयंत कोठारी ने बाल ब्रह्मघर का अर्थ ब्रह्मचारी बताया है। इस तरह कवि मूलचंद जी का शिष्य है। इस रचना में १८ पापों का वर्णन और उनसे बचने के लिए चेतावनी दी गई है । २११ कोठारी जी गुरु परम्परा में उल्लिखित 'कान' शब्द को भ्रष्ट पाठ का परिणाम मानते है कितु मुझे कांन जी गुरु परम्परा के शीर्ष पुरुष प्रतीत होते है। जो हो, यह विचारणीय है। रचना काव्य दृष्टि से सामान्य किन्तु धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
धर्मपाल -
आप पानीपत निवासी गर्ग गोत्रीय अग्रवाल श्रावक थे। इनके पूर्वज भोजराज और पृथ्वीपाल तेजपुर में रहते थे। वहाँ से चलकर ये लोग पानीपत में रहने लगे थे। इनके गुरु सहसकीर्ति थे। 'श्रुतपंचमी रास' और 'आदिनाथ स्तवन' नामक इनकी दो रचनायें ज्ञात है, जिनका विवरण आगे दिया जा रहा है। श्रुत पंचमी रास (सं० १८९९) का
रचनाकाल — नव सत सै नव दोइ अधिक संवत तुम जाणइ,
माघ मास रवि दिन पंचमी, तुम ऋषि सुभ आणउ ।
गुरु का उल्लेख इन पंक्तियों में है
सहसकीरत गुरु चरण कमल नमि रास कीयो, सुधे पण्डीत जन मतिहास करीयो ।
इनकी दूसरी रचना 'आदिनाथ स्तवन' की प्रारम्भिक पंक्तियाँ देखें
बीतराग अनंत अतिबल मदन मान विमर्दनं, वसु कर्म्म घन सारंग षंडन, नविवि जिन पंचाननं । वर गर्भ जन्म तपो गुनं, दुति रूढ़ प्रभु पद्मासनं, पदपिंड रूप निरजो जनं, रति सुकल ध्यान निरंजनं ।
X X X
X X X दस अष्ट दोष विवर्जितं प्रतिहार अष्ट अलंकृत, जर जन्म मरण निकंदितं, धनपाल कवि कृत वंदितं । २१२
इस रचना का रचनाकाल ज्ञात नहीं है।
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