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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास धीरविजय
आपने सं० १८४६ से पूर्व यशोविजय कृत मरुगुर्जर रचना सीमंधर स्तव पर बालावबोध की रचना की है। इनकी गद्यशैली का नमूना उपलब्ध नहीं हो सका।२१३ नंदराम
ये स्थानकवासी जैन कवि थे। इनका मुख्य निवास स्थान राजस्थान था किन्तु ये पंजाब में अधिक विहार करते थे। इनकी भाषा में राजस्थानी प्रयोग अधिक है। इन्होंने अधिकतर रचनायें १९वीं शताब्दि में और कुछ २०वीं शती में लिखी है। इनका रचनाकाल १९वीं शती का अंतिम चरण और २०वीं का प्रथम चरण है, इसलिए इनकी चर्चा यहाँ कर दी जा रही है। रूक्मिणी मंगल चौपइ सं० १८७६, होशियारपुर; शत्रुघ्न चौ० सं० १८९९ फरीद कोट, भीमकुमार चौ० सं० १९०१ होशियारपुर, लब्धिप्रकाश चौ० १९०३ कपूरथला, ज्ञानप्रकाश १९०६ कपूरथला, और बावनी नामक इनकी रचनायें उपलब्ध है।२१४
श्री मो० द० देसाई ने इनका नाम नंदलाल बताया है और इन्हें रूक्मिणी मंगल चौ० का कर्ता बताया है। इसका भी रचनाकाल सं० १८७६ और रचना स्थान होशियारपुर लिखा है। अत: यह निश्चित रूप से वही चौपई है जिसे नाहटा जी ने नंदराम की कृति बताया है।२१५ नंदलाल स्थानकवासी संप्रदाय के आचार्य धर्मदास की परम्परा के आचार्य थे। इनके पश्चात् माधव मुनि आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए थे।२१६ नंदलाल छाबड़ा
आपने 'मूलाचार की बचनिका' सं० १८८८ में लिखी।२१७ यह रचना इन्होंने ऋषभदास निगोता के सहयोग से की थी। नथमल बिलाला
ये मूलनिवासी आगरा के थे लेकिन बाद में भरतपुर और हिंडौन में रहते थे। इनके पिता का नाम शोभाचन्द्र था। इन्होंने सिद्धान्त सार दीपक की रचना सुखराम की सहायता से भरतपुर में की और हिंडौन में अटेर निवासी पाण्डे बालचन्द्र की सहायता से 'भक्तामर स्तोत्र' भाषा की रचना सं० १८२९ में की। इन दोनों ग्रंथों के अलावा आपने जिनगुण विलास १८२२, जीवंधर चरित १८३५, अष्टान्हिका कथा, नाग कुमार चरित्र १८३४ और जंबू स्वामी चरित्र नामक रचनायें स्वयं स्वात: सुखाय की। कवि ने आत्म परिचय इन पंक्तियों में दिया है
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