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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास उदयरत्न ने यह रचना नव ढालों में की थी। दीपविजय ने उसमें स्वरचित दोहे मिलाकर यह नवीन रचना प्रस्तुत किया है। १९३ दीप विजय (कविराज) तपागच्छीय प्रेमविजय के प्रशिष्य और रत्नविजय के शिष्य थे। 'वटपद्र (बड़ोदरा) नी गजल' इनकी प्रसिद्ध प्रकाशित रचना है। यह ६३ कड़ी की कृति सं० १८५ मागसर शुक्ल १, शनिवार को पूर्ण हुई थी। इसका आदि इस प्रकार हुआ है
सेवक ने वर दीपनी, भगिनी शखी (शचि) अवल्ल,
प्रणमी वटपद्र नयर नी, कहेस्युं ओक गजल। रचनाकाल- पुरन किद्ध गजल अवल्ल अठार से बावन चित्त उलासे,
थावर वार मृगसीर मास तिथि प्रतिप्रद पक्ष उजासें। गुरुवंदन- उदयो भले थाट उदयसूरि पाटह लक्ष्मी सूरी जिम भान आकासे
प्रेमेय रत्न समान वरनन सेवक दीपविजय इम भासे। यह ‘साहित्य पु० २० अंक २ पृ० ७२ पर प्रकाशित है। रोहिणी स्तवन (सं० १८५९ भाद्र शु० खंभात) का रचनाकाल
संवत् अठार उगणसाठिनो अ, उज्वल भाद्रव मास; दीप विजयें तप गाइओ ओ करी खंभात चोमास। नमोः सकल पंडितप्रवर भूषण प्रेमरत्न गुरु ध्याइया,
कवि दीपविजये पुण्य हेतें रोहिणी गुण गाइया।
यह जैन प्रबोध पुस्तक और जैन काव्यप्रकाश भाग १ में तथा जैन काव्यसार संग्रह पृ० ७० तथा अन्यत्र से प्रकाशित है। 'केशरिया जी लावणी अथवा ऋषभ देव स्तव' सं० १८७५; यह रत्नसागर भाग २ पृ० ४८६-९० और जैन सत्यप्रकाश अंक५-७ पृ० २०० पर प्रकाशित है। 'सोहम कुल पट्टावली रास (४ उल्लास सं० १८७७, सूरत) यह रचना सूरत के व्रजलाल के पुत्र अनोपचंद के लिए की गई थी। रचनाकाल इन पंक्तियों में दिया गया है।
संवत् अठार सतोतर वरसे, सक सतरसेहें बेहेताल; श्री सुरत बंदिर में गाई, सोहमकुल गणमाल रे। प्रेमरत्न गुरुराज पसाई, सोहम पटधर गाया;
मनइछित लीला सहु प्रगटें, दीपविजय कविराया रे।" यह पट्टावली समुच्चय भाग २ में प्रकाशित है। ‘सूरत की गजल' (८३ कड़ी,
अंत
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