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आसकरण - इन्द्रजीत
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है | अगरचंद नाहटा भी इन्हें रायचंद का शिष्य कहते हैं इसलिए गुरु परंपरा में कोई शंका नहीं है। इनकी तमाम रचनाओं का नामोल्लेख तो नाहटा जी ने किया है। किन्तु कोई उदाहरण किसी रचना से नहीं दिया है। उन्होंने धन्ना सतढालिया का रचनाकाल १८५९, नागौर और नेमिराज ढाल अने चूनडी रास (दोनों एक ही रचना है) का रचनाकाल सं० १८४९ बताया है । ३०
इन्द्रजीत
इनकी एक रचना 'मुनि सुब्रतपुराण' (सं० १८४५ मैनपुरी) का परिचय मिला
है यथा
केवल श्री जिनभक्ति को, हुव उछाह मन मांहि,
ताकरि यह भाषा करौं, ज्यो जल शशि शिशु छाहिं । श्री जिनेन्द्र भूषण विदित, भट्टारक मह मांहि, जिनके हित उपदेश सो, रच्यों ग्रंथ उत्साहि । " इससे ये जिनेन्द्र भूषण के शिष्य लगते हैं।
रचनाकाल - " रंध्रि द्विगुण शत च्यार शर, संवत्सर गत जान, पौष कृष्ण तिथि द्वैज सह, चंद्रवार परिमान ।
तादिन पूरो ग्रंथ हुत, मैनपुरी के मांहि, पटे सुने उरमें धरें, सो सुर रमा लहाहिं । " ३१
श्री कस्तूरचंद कासलीवाल ने इसे हिन्दी भाषा की पद्य रचना बताते हुए लेखन काल सं० १८८५ बताया है । ३२ पता नहीं यह लिपि का लेखनकाल है या भ्रमवश रचनाकाल ही १८८५ मान लिया है क्योंकि रचनाकाल सूचित करने वाले प्रतीक शब्द भ्रामक है। उनका अर्थ १८४५ और ८५ दोनों हो सकता है। 'द्विगुण शत' शब्द का स्पष्ट अर्थ नहीं बैठता। इसकी प्रति श्री नया मंदिर धर्मपुर (दिल्ली) के शास्त्र भंडार में सुरक्षित है, जिज्ञासुओं को मूल प्रति से शंका समाधान करना उचित होगा। उत्तमचंद भंडारी
ये जोधपुर के राजा मानसिंह के मंत्री थे। आप साहित्य और अलंकार शास्त्र के अच्छे ज्ञाता थे। अलंकार शास्त्र पर आपका एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ 'अलंकार आशय' प्राप्त है जिसकी रचना सं० १८५७ में हुई थी। आपकी अन्य रचनाओं में 'नाथ चंद्रिका' १८६१ और 'तारकतत्त्व' का नाम विशेष रुप से उल्लेखनीय है । ३३
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