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उदयसोम सरि - उद्योतसागर सूरि
४७ तास फल सुकृत थीं सकल प्राणी, कहे ज्ञानउद्योत धन शिव निशानी। दोहा- अकवीस श्रावक गुण वर्मे पूजा पुष्कर मेह,
सुखर सुख फूले फले, शिव सुख कहे अछेह। अंत- "अगणित गुण मणि आगर, नागर वंदित पाय,
श्रुतधारी उपगारी, ज्ञानसागर उवझाय।"
यह पूजा श्री मद्देवचंद भाग २ पृ० ८७२-७३ पर प्रकाशित है। इसी भ्रमवश इसे देवचंद की रचना कहा गया था, परन्तु जैन गु० क० के नवीन संस्करण में इसे उद्योतसागर की रचना बताया गया है।४८
(श्रावक गुणोपरि) अष्ट प्रकारी पूजा (विधि) सं० १८२३, इसमें गद्य-पद्य दोनों विधाओं का प्रयोग किया गया है, इसका प्रारंभिक दोहा आगे दिया जा रहा है
शुचि सुगंधवर कुसुमयुत जल शुं श्री जिनराय,
भाव शुद्ध पूजन भव कषाय पंकजल जाय। पाठांतर- गंगा मागध क्षीरविधिं ओषध मंथित सार,
कुसुमे वासित शुचि जलें, करो जिन स्नात्र उदार। रचनाकाल- संवत् गुण युग अचल इंदु हरषभर गाइयें श्री जिनेन्दु,
तास फल सुकृत श्री सकल प्राणी लहौ, ग्यान उद्योत धन शिव निशानी।
यही रचनाकाल ज्यों का त्यों २१ प्रकारी पूजा का भी बताया गया है। अंत- “इम आठविध पूजा जिनपूजा, विरचे जे थिर चित्त,
मानव भव सफलो करै, वाधै समकित वित्त।
यह रचना भी मद्देवचंद भाग २ पृ० ८८४-९१ और विविध पूजा संग्रह (प्रकाशक भीमसिंह माणेक) में देवचंद के नाम से ही प्रकाशित है। आराधना ३२ द्वारनो रास
इसकी प्रति खंडित होने के कारण रचनाकाल और अन्य विवरणों से संबंधित उद्धरण उपलब्ध नहीं हैं। वीरचरित्र वेली (गा० १७) इनकी एक लघुकृति है। आपने कुछ गद्य रचनायें भी की है उनका विवरण भी दिया जा रहा है
सम्यकत्व मूल बारव्रत विवरण अथवा बारव्रत टीप (हिन्दी) सं० १८२६
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