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जीव जी - ऋषि जेमल
तीर्थ प्रर्वत्तावी, पहोत्या भवजलतीर। रचनाकाल- संवत् अठार ने वरसे सातो सिरदार,
गढ़ जालोर मां अह कहयो अधिकार। अंत- ओ जतियों सतियों शुं राखो उज्वल भाव,
ओम कहे ऋषि जेमल जी, अह ज तरणा नो दाव।
यह रचना विविध पुष्प वाटिका भाग २ पृ० ५४६-५५ और जैन स्वाध्याय मंगल माला भाग २ पृ० ६९-७० पर प्रकाशित है।
नेमचरित्र चोपाई अथवा नेमरास (सं० १८०४ भाद्र शुक्ल ५);
खंधक चोढालियुं अथवा चौपाई (६७ कड़ी सं० १८११ चैत्र ७ लांडूया) आदि
सावथी नगरी सोहामणी जी कनककेतु तिहांराय, खंधक कुमार सोभागीयो जी, मल्ली कुमारी माय।
क्षमावंत जोग भगवत रो ज्ञान। रचनाकाल- संवत् अठारै इग्यारोत्तरे चैत्र मासा हो सातम वार,
लाडुऔ जेमल जी कहे ऊछो अधिको हो मिच्छामि दुक्कड़ जोया अंत
करम खपावी मुगते गया, वधायों हो जयो धरम नी सेन।
अर्जुनमाली नी ढाल (६ढाल सं० १८२० कार्तिक शुक्ल १५) अंत- अंतगड मांह काढो निचोड़ी, तिण अणुसारे रिष जेमल जोड़ी।
अठार से ने बीस माया काती सुद पूनम सुभ ठाया। . अवंति सुकमाल चौढालियुं (सं० १८२५ आसो शुक्ल ७, नागौर); परदेशी राजा जो ढाल अथवा संधि, चौपाई, चरित्र (२२ ढाल) का आदि
रायपसेणी सूत्र मधे, राय प्रदेशी ना भाव, सूरीयाभ देव भरनै हुवौ, धरम भणी प्रभाव। आलमकंपानगरी समोसर्या महावीर,
सूरीयाभ दैव तिहां आवीयो, नाटक करवा तीर। पाठांतर- अरिहंत सिद्ध वलि आपरीया, उबझाय सधना साध,
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