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ज्ञानचंद |
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ज्ञानचंद ||
आप उदयपुर रियासत स्थित मांडलगढ़ ग्राम के निवासी थे। ये राजस्थान के इतिहास के ज्ञाता तथा संकलन कर्त्ता थे। इन्होंने कर्नल टांड की प्रसिद्ध पुस्तक 'राजस्थान का इतिहास' लिखने में बड़ी सहायता की थी। टाड साहब इन्हें गुरुवत् सम्मान देते थे। यह इतिहासज्ञ के अलावा कवि भी थे। इनकी कुछ स्फुट रचनाओं का उल्लेख मिश्र बन्धुओं ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ में किया है और रचनाकाल सं० १८४० दिया है। नाथूराम प्रेमी ने भी इन्हें १९वीं (वि०) शती का कवि बताया है । १५
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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
आपने आचार्य शुभचंद्र कृत ज्ञानार्णव पर संस्कृत एवं हिन्दी गद्य में उत्तम टीका की है। ज्ञानार्णव हिन्दी टीका का रचनाकाल सं० १८६० माघ शुक्ल २ है । इसकी गद्य भाषा मरु गुर्जर या पुरानी हिन्दी है । इसकी प्रति दिगम्बर जैन मंदिर कोटडियाल डूंगरपुर में उपलब्ध है । १५५
ज्ञानसागर
इनका जन्म जांगलू निवासी उदयकरण के यहाँ सं० १८०१ में हुआ था। इनका मूल नाम नारायण था। दीक्षानाम ज्ञानसार सं० १८२१ में दीक्षोपरांत् रखा गया। आप जिनलाभ सूरि के शिष्य रत्नराज गणि के शिष्य थे। तमाम स्थानों में विहार करके सं० १८७० में ये बीकानेर गये । और १८९८ में मृत्युपर्यंत वही रहे। आप राजमान्य आध्यात्मिक साधु और जैन दर्शन के गहन विद्वान् थे। जयपुर के राजा प्रतापसिंह, उदयपुर के महाराणा तथा जैसलमेर के रावल और किशनगढ़ के नरेश आपको आदर देते थे। बीकानेर नरेश सूरतसिंह तो इन्हें नारायण का अवतार ही मानते थे। इनकी रचनाओं का संकलन-संपादन दो भागों में अगरचंद नाहटा ने किया है। प्रथम भाग में इनका विस्तृत जीवन चरित्र भी दिया गया है और यह काफी पहले प्रकाशित भी हो गया था। मालापिंगल, चन्द्र चौपई, समालोचना सिंगार, कामोद्दीपन, पूर्व देश छंद और कई छत्तीसियाँ तथा अन्य रचनायें हिन्दी मरु गुर्जर में प्राप्त और संकलित हैं| आनंदघन की चौबीसी और पदों पर सैतीस वर्ष तक गंभीर चिंतनोपरांत आपने लोकभाषा में उत्तम टीका लिखी है। गद्य ग्रंथों में अध्यात्म गीता टीका, जिन प्रतिमा स्थापना विधि आदि उल्लेखनीय रचनायें हैं। चौबीसी १८७५ बीकानेर, बीसी १८७८ बीकानेर, ४७ बोल गर्भित चौबीसी १८५८, संबोध अठत्तरी १८५८, नवपद पूजा एवं कई स्वतन इत्यादि उपलब्ध है । १५६
जयपुर
के राजा प्रतापसिंह की इच्छानुसार 'कामोद्दीपन' ग्रंथ रचा गया था।
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