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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास प्राकृत ते भाषा करुं मालापिंगल नाम,
सुखैबोध बालक गहै, पर समको नहि काम।
यह पिंगल शास्त्र संबंधी रचना मूलत: प्राकृत में थी। चंद चौपाई समालोचनाचंद चौपाई मोहनविजय की संदर काव्यकृति है। यह ग्रंथ उसी की समालोचनार्थ चारसौ से अधिक दोहों में रचा गया है। यह प्राचीन समीक्षा पद्धति का दुर्लभ नमूना है। यह रचना सं० १८७७ चैत्र वदी २ को पूर्ण हुई थी।
वीशी- सं० १८७८ कार्तिक शुक्ल १ बीकानेर का आदि
किम मिलियै किम परचीयै, किम रहियै तुम पास; किम तवीयै तवना करी तेह थी चित्त उदास। सीमंधर प्रीतडी रे करियै केण उपाय,
भाषो कोई रीत डी रे।
'प्रस्ताविक अष्टोत्तरी' १९२ दोहा १८८० आसो, बीकानेर। निहाल बावनी अथवा गूढा बावनी सं० १८८१ इसमें कुछ गूढ़ प्रश्न हैं रचना प्रश्नोत्तर शैली में है, यथाआदि- चांच आंख पर पाउंखग ठाड़ो अंबनि डाल,
हिलत चलत नहि नभ उड़त, कारण कौन निहाला
जिनकुशल सूरि (दादाजी) अष्टप्रकारी पूजा- पहले संस्कृत में पंक्तियाँ हैं, बाद में दोहा है। यथा
गंगाजल तिम निर्मल वलि, तीर्थोदिक भरपूर
कलश भरी गुरुचरण पर, ढाले तस दुख दूर। इसके अंत में लिखा है- इति श्री पार्श्वपक्षादि सुरसेवित लघु आनंद धन कृत श्री जिन पूजा, श्री नारायण जी बाबा जी रचिता समाप्त। इसे नाहटा जी ने संशोधित करके 'जिनदत्त सूरि चरित्र' में प्रकाशित किया
पद्य के अतिरिक्त आपने गद्य में भी पर्याप्त लिखा हैं इनकी कुछ महत्त्वपूर्ण गद्य रचनाओं का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है।
आनंद घन चौबीसी बाला० (१८६६ भाद्र शुक्ल १४) यह बालावबोध प्रकरण
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