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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अंत- बाबाजी वाचक अब, अखै राठौड़ो राज,
खरतरगुरु सगला अखै, रतन अखै महाराज।१५९ ज्ञानसागर
आप काष्ठासंघ (दिग०) के आचार्य श्री भूषण के शिष्य थे। आपकी एक रचना 'कथा संग्रह' दिगम्बर जैन पंचायती मंदिर दिल्ली में है। इस संग्रह में रक्षाबंधन, लब्ध विधान व्रत, अष्टाह्निका व्रत इत्यादि कुल २० कथायें संकलित हैं। गुरुपरम्परा संबंधी पंक्तियाँ देखिये
विद्याभूषण गुरु गच्छपती, श्री भूषण सूरिवर सुभमती; ता प्रसाद पायो गुणसार, ब्रह्मज्ञान बोलै मनुहार। षिणभंगुर संसार अपार विनसत घटी न लागै बार, रामा सुत और जोबन भोग, देखत-देखत होत वियोग। जिम एवट तिम सगला लोक, मरण समय सब थावै फोक,
राजा मन चिंतै वैराग, वृद्धपणौ संयम नो लाग। xxxxxx
"सब निज घटें सुष भर रहैं, धर्म भार सब निज सिर सहै। नेमनाथ जिन परम दयाल, केवलज्ञान लघु गुनमाल। तसु पद वंदन करवा काज, गिरनारे चाल्यो हरिराज।
रुक्मण नैं देषाड़े भूप, ऊर्जवंत गिरि तणौ सरुप।१६० ज्ञानसागर शिष्य
ये ज्ञानसागर के शिष्य उद्योतसागर, जिनकी चर्चा पहले की गई है, हो सकते हैं। इनकी एक रचना का विवरण यहाँ दिया जा रहा है। रचना-सम्यकत्व स्तव बाला० है। उद्योतसागर ने भी सम्यकत्वमूल बारव्रत विवरण अथवा टीप लिखा है। इन समानताओं के अलावा विषमतायें भी अनेक है जैसे रचनाकाल, रचनास्थान और रचना के प्रेरक पुरुष आदि। इसके प्रारम्भ में भी संस्कृत भाषा में लिखा है
श्रीमद् वीरं जिनं नत्वा गुरु श्री ज्ञानसागरं।
श्री सम्यकत्व स्तवस्यार्थो लिख्यते लोकभाषया।
आगे लिखा है कि ज्ञानसागर का यह शिष्य पूर्व के तीर्थों का भ्रमण करने के लिए शुभ सकुन में सूरत से प्रयाण करके जमुना नदी के तट से होकर मकसूदाबाद
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