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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
सं० १८५३ कार्तिक शुक्ल २, अजीमगंज है । इस दृष्टि से देखने पर बीच की दूसरी रचना जंबू चरित का रचनाकाल सं० १८५२ होना चाहिए न कि सं० १८०५ । इसलिए नवीन संस्करण के संपादक श्री जयंत कोठारी ने भी इसका रचनाकाल सं० १८५२ ही दिया है । ११२
(ऋषि) चौथमल -
इनका जन्म सं० १८०० में मंवाल गांव में हुआ था। झागड़ गोत्रीय श्री रामचन्द्र इनके पिता थे और श्रीमती गुमान बाई माता थी । इन्होंने सं० १८१० में मुनि अमीचंद से दीक्षा ली। आपने काफी साहित्य की रचना की जिसकी सूची आगे दी जा रही है। आप मरुगुर्जर के महत्त्वपूर्ण कवि थे। आपने रामायण और महाभारत जैसे वृहद् काव्य ग्रंथ रचे। रचनायें – रामायण १८६३ जोधपुर, महाभारत (ढालसागर) १६३ ढाल सं० १८५६ नागौर, श्री पाल चरित्र सं० १८६२, पीपाड़, जंबू चरित्र सं० १८६२ जोधपुर, ऋषिदत्ता (ढाल ५७, सं० १८८४ मेवाड़, सेठ की ढाल जैतारण, रहनेमी राजेमती ढाल, सं० १८६२ पीपाड़, चौदह श्रोताओं की ढाल १८५२ पीपाड़, तामली तापस चरित्र, जैतारण, जिनरिख जिनपाल च०, सेठ सुदर्शन, नंदन मणियार, मिश्र पंथि चर्चा, दयादान की चर्चा, सनत्कुमार चौढालिया, पीपाड़, दमघोष चौ० १८६२, चण्डावल स्तुति और स्फुट पद इत्यादि । ११३
रचनाओं के नमूने के लिए एक कृति 'ऋषिदत्ता' चौ० का विवरण- उदाहरण भी दिया जा रहा है - ऋषिदत्ता चौ० (५७ ढाल, १८६४ कार्तिक शुक्ल १३ देवगढ़)। आदि
“सासण नायक सिमरता पामीजै नवनिध, सुभ वले पामे सासता, कारज थाये सिद्ध । रिषदत्ता मोटी सती, पाल्यो सील उदार, तेह तणो संबंध कहुं, सांभलज्यो नरनार । " ]
रचनाकाल — संवत् १८ से चौसठे, सुद काती तेरस जाणों जी, देस मेवाड़ में देवगढ़ चावों, जितां अ ग्रंथ रचाणो जी। ऋष चौथमल कही ढाल सत्तावन, अरिषदत्ता अधिकारो जी, अकचित्त करने सुणनै सरधै, ज्यारे वरते जय जयकारी जी ।" उपदेशमाला में अ कथन चाल्यो, ग्यानी देवा धाल्यो जी । " ११४
अंत
जगजीवन (गणि) -
आप लोकागच्छीय रूप ऋषि की परम्परा में जगरूप के शिष्य थें; आपने अनेक
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